बॉलीवुड में बड़े बजट की फिल्मों और नई डील्स के बावजूद निवेशकों का भरोसा कम होता जा रहा है. ET की एक रपोर्ट के अनुसार, अदार पूनावाला और धर्मा प्रोडक्शंस की 1000 करोड़ रुपए की डील ने सालभर में इंडस्ट्री के फाइनेंशियल दबाव को दिखाया है. बड़ी फिल्मों का बॉक्स-ऑफिस पर असफल होना, स्टार्स की (people are afraid to invest) फीस का बढ़ना और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म का घटता बजट निवेशकों को सतर्क कर रहा है.

 फिल्म प्रोडक्शन हाउस में निवेश अब उतना आसान नहीं रहा. एक्सेल एंटरटेनमेंट, संजय लीला भंसाली फिल्म्स जैसी कंपनियां शुरुआती स्टेक-सेल बातचीत में हैं, लेकिन निवेशकों की प्राथमिकता अब स्थिरता और रिपीटेबल रिटर्न पर है. ET से बातचीत में सुनील वाधवा, को-फाउंडर कार्मिक फिल्म्स, ने बताया कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री अब भी बहुत उतार-चढ़ाव वाला बिजनेस है. बड़ी स्टूडियो की सफलता में कोई गारंटी नहीं, इसलिए निवेशक सुरक्षित और डेटा-ड्रिवन प्रोजेक्ट्स पर ध्यान दे रहे हैं.

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डिज्नी और वायकॉम जैसे ग्लोबल स्टूडियो का भारत से थोड़ा हटना भी निवेशकों के मूड को प्रभावित कर रहा है. इससे पता चलता है कि भारत में फिल्म इंडस्ट्री को अभी भी ग्लोबल निवेशकों के भरोसे और जागरूकता की जरूरत है. इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का मानना है कि इंडस्ट्री में कंसोलिडेशन की आवश्यकता है ताकि मिड-साइज कंपनियां स्केल तक पहुंचकर कैपिटल आकर्षित कर सकें.

people are afraid to invest – इन चुनौतियों के कारण हिंदी फिल्म प्रोड्यूसर्स अब साउथ फिल्मों पर ध्यान दे रहे हैं. यहां चार भाषाओं में एक्टर्स के विकल्प मिलते हैं, फीस नियंत्रित रहती है और जोखिम कम होता है. इसके अलावा, मेट्रो के बाहर सिनेमा इंफ्रास्ट्रक्चर और सीमित टैक्स इंसेंटिव ने भी निवेश को हतोत्साहित किया है.

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