हरियाणा में कांग्रेस को आज बड़ा झटका लगा है। दरअसल पूर्व मंत्री और तोशाम से विधायक किरण चौधरी अपनी बेटी श्रुति चौधरी के साथ बीजेपी में शामिल हो गई है। वहीं किरण चौधरी के इस फैसले का कांग्रेस की सीनियर लीडर और सिरसा सीट से सांसद कुमारी शैलजा ने समर्थन किया है। रेवाड़ी में कुमारी शैलजा ने कहा है कि श्रुति के साथ इंसाफ नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि कांग्रेस भिवानी और गुरुग्राम दोनों सीटों पर हारे है। लेकिन गुरुग्राम जो अहीरवाल है, वहां कैप्टन अजय यादव लड़ लेते। यहां श्रुति लड़ लेती तो हम जीत जाते।

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किरण का खफा होना स्वाभाविक- शैलजा

वहीं कुमारी शैलजा का कहना है कि अगर टिकटों का वितरण ठीक से होता तो नतीजे कुछ और ही होते। किरण चौधरी का खफा होना स्वाभाविक है। उनके परिवार का योगदान दशकों से रहा है। उनकी बेटी श्रुति वहां से पहले भी MP रही है। श्रुति को टिकट मिलती तो जीतती। शैलजा ने कहा कि वो उनकी बात को सपोर्ट करती है। हमारी ओर से ये बात पहले भी पार्टी प्लेटफॉर्म पर रखी और आगे भी रखेंगे। थोड़ा दुख होता है कि कहां हम 10 की 10 सीट जीत रहे थे और अब हम 5 पर आकर टिक गए। इसके पीछे का कारण टिकटों का सही वितरण न होना ही है।

राव दान सिंह को मिला श्रुति का टिकट

आपको बता दें कि लगातार 4 बार भिवानी की तोशाम सीट से MLA किरण चौधरी अपनी बेटी श्रुति चौधरी को भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती थीं। दरअसल श्रुति पहले भी 2009 में इस सीट से सांसद रह चुकी है, लेकिन पिछले 2 चुनाव में लगातार हार के कारण पार्टी ने इस बार उनकी टिकट काटकर पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा के खास महेंद्रगढ़ से विधायक राव दान सिंह को दे दी। वहीं बेटी की टिकट कटते ही किरण ने बगावती तेवर अपना लिए थे, लेकिन चुनाव के वक्त पार्टी नहीं छोड़ी।

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भीतरघात बना कांग्रेस की हार का कारण

लोकसभा चुनाव के प्रचार से किरण और उनकी बेटी श्रुति ने पूरी तरह किनारा कर लिया। दोनों तरफ से खूब बयानबाजी हुई। आखिर में भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट कांग्रेस हार गई, जिसका कारण भितरघात बताया। इसके बाद किरण ने फिर से मीडिया के सामने आकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा का नाम लिए बगैर उन पर कई आरोप लगाए।

कौन है दिग्गज नेता किरण चौधरी ?

किरण चौधरी पूर्व मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल की पुत्रवधू और सुरेंद्र सिंह की पत्नी हैं। पति सुरेंद्र सिंह की मौत के बाद किरण ने साल 2005 से बंसीलाल की राजनीतिक विरासत को संभाले हुए हैं। किरण ने कई बार खुले तौर पर यह बात कही कि पार्टी के भीतर ही उनकी अनदेखी की जा रही है। ऐसे में किरण के सामने चुनौती बंसीलाल की विरासत को बचाने की आ गई। क्योंकि, कांग्रेस में रहते हुए बंसीलाल के कोर वोटर को रोकना किरण चौधरी के लिए मुश्किल हो रहा था। इसे बचाने के लिए उन्होंने कांग्रेस छोड़ बीजेपी जॉइन करने का बड़ा फैसला लिया।

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