गाजियाबाद की लोनी सीट से विधायक नंदकिशोर गुर्जर एक बार फिर अपने ही सरकार पर उंगली उठा रहे हैं. श्री राम कथा यात्रा की मंजूरी को लेकर विधायक गाज़ियाबाद के पुलिस कमिश्नर (what is in Keshav’s mind) और यूपी के मुख्य सचिव को सीधे चुनौती दे रहे हैं. बीजेपी ने विधायक को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. लेकिन केशव मौर्या उनके साथ मंच साझा कर रहे हैं और मजबूती से उनके साथ खड़े हैं. गोपामऊ से विधायक श्याम प्रकाश तो सीधे सीधे केशव को सीएम बनाने की मांग कर दिए हैं.

इसे भी पढ़ें – जितने मंदिर उतने ढूंढेंगे और दुनिया को दिखाएंगे… संभल पर सीएम योगी की दो टूक

what is in Keshav’s mind – केशव उनके साथ भी खड़े नजर आ रहे हैं और उनको भोला भाला बताकर भोलेपन में दिया गया बयान बता रहे हैं. बीजेपी में अब तक हुए महानगर और जिलाध्यक्षों की लिस्ट से भी ये जाहिर हो रहा है कि यूपी में बीजेपी एक बार फिर ओबीसी पॉलिटिक्स के ही सहारे 2027 के चुनाव में जाने के मूड में है.अब बीजेपी की मौजूदा सियासी बदलाव और राजनैतिक घटनाक्रम को देखते हुए कई सवाल खड़े हो रहे हैं.

यूपी बीजेपी ने खड़े हो रहे ये सवाल
  1. क्या ये मान लिया जाए कि अब बीजेपी में सीधे सीधे लकीर खींचने वाली सियासत शुरू हो गई है?
  2. क्या 2019 और 2024 में लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद संगठन बनाम सरकार वाली परिस्थिति फिर से यूपी में बन रही है? और इस बार ये बहस संगठन में ओबीसी नेतृत्व और महत्व को रेखांकित करते हुए बढ़ रही है?
  3. तीसरा और सबसे अहम सवाल कि क्या संगठन और सरकार में बेहतर तालमेल के लिए प्रदेश का नेतृत्व ओबीसी लीडरशिप के हाथों में होना चाहिए?
ओबीसी वोटबैंक निर्णायक तो नेतृत्व क्यों नहीं?

अब पिछड़े वर्ग के विधायकों में ये बात मजबूती से घर कर गई है कि सरकार बनाने में ओबीसी वोटबैंक निर्णायक है और पिछड़े बीजेपी के साथ मजबूती से खड़े हैं तो नेतृत्व उनके हाथों में क्यों नही है? राजेंद्र कुमार कहते हैं कि हालांकि ये कहना अभी से ठीक नहीं होगा कि केशव सीएम ही बनना चाहते हैं या नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है. लेकिन इतना जरूर है कि योगी सरकार को आठ साल पूरे हो रहे हैं और बीजेपी को नया प्रदेश अध्यक्ष मिलने जा रहा है और वो भी पीडीए से ही होने की संभावना है. तो हर नेता अपनी अपनी गोटी सेट करने में लगा है.

Share.
Exit mobile version