Kurukshetra: hanging of two real brothers did not reduce courage, next generations fought for freedom

आरडी गोयल
– फोटो : अमर उजाला


गुलामी की जंजीरों से देश को आजाद कराने में आंदोलनकारियों के बलिदान अविस्मरणीय हैं। अंग्रेजों के लाख जुल्मों सितम के बावजूद आंदोलनकारियों ने आजादी की लड़ाई को कमजोर नहीं पड़ने दिया। इन्हीं आंदोलनकारियों में शामिल थे कुरुक्षेत्र में रहने वाले 76 वर्षीय आरडी गोयल के पूर्वज, जिनकी तीन पीढि़यों ने स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाया और उसे अंजाम तक पहुंचाया। इन्हीं के पूर्वजों में शामिल थे दो सगे भाई, जिन्हें अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था।

दोनों भाइयों को अंग्रेजी हुकूमत ने गांव में ही फंदे पर लटका दिया

आरडी गोयल बताते हैं कि उनके पूर्वज कभी सोनीपत के गांव नगर में रहते थे। उस समय 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में सगे भाई सेठ गुलाब दास राय और सेठ राजा सेजाद दास राय ने अंग्रेजाें के पसीने छुड़ा दिए थे। आंदोलन का बिगुल फूंकने के कारण इनकी गिनती दिल्ली के बादशाह बहादुर शाह जफर के विश्वास पात्रों में की जाने लगी थी, जो अंग्रेजों के लिए नाकाबिले बर्दाश्त थी। इस कारण दोनों भाइयों को अंग्रेजी हुकूमत ने गांव में ही फंदे पर लटका दिया था।

सेठ गुलाब दास राय को जब फांसी दी गई तो उस समय उनके बेटे विश्म्बर दास राय महज 13 साल के थे। किसी तरह लोगों ने उन्हें अंग्रेजों की क्रूरता से बचाकर कैथल छोड़ दिया, लेकिन उन्हें भी अंग्रेजों की क्रूरता व गुलामी सहन नहीं थी। इस कारण वे भी आंदोलन में भागीदारी करने लगे। यही नहीं बिश्म्बर दास राय के पुत्र गुन्नूमल राय ने वर्ष 1905 में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। इसके साथ ही उन्होंने बंग आंदोलन में भी हिस्सेदारी की।

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