बिहार में नामांकन प्रक्रिया खत्म होने के बाद चुनाव प्रचार जोर पकड़ता जा रहा है. लेकिन कई सीटों पर मुकाबला अपनी-अपनी वजहों से दिलचस्प हो गया है. इसी में सीमांचल क्षेत्र की एक सीट है जहां पर आज तक एक भी हिंदू प्रत्याशी को जीत नहीं मिली तो वहीं एक मुस्लिम परिवार का यहां पर लंबे समय से दबदबा भी बना हुआ है. परिवार का दबदबा इस कदर है कि 2 सगे भाई एक बार फिर आमने -सामने हैं.
मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र के अररिया जिले में विधानसभा की 6 सीटें आती हैं जिसमें जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र भी शामिल हैं और सियासी हलकों में इसे इस बार के चुनाव में सबसे हॉट भी सीट माना जा रहा है. जोकीहाट में बिहार सरकार के 3 पूर्व मंत्री अपनी किस्मत आजमा रहे हैं जिसमें 2 तो सगे भाई ही हैं.
तस्लीमुद्दीन ने जोकीहाट सीट पर बनाया दबदबा
मोहम्मद तस्लीमुद्दीन बिहार की सियासत में कद्दावर मुस्लिम नेताओं में शुमार किए जाते रहे हैं. वह मनमोहन सिंह की सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे. साथ में जोकीहाट सीट से वह 5 बार विधायक रहे. उनके बाद उनके बेटों ने पिता की विरासत संभाली और राजनीति में आगे बढ़े, लेकिन आज की तारीख में दोनों बेटे एक-दूसरे के खिलाफ ही मैदान में ताल ठोंकते नजर आ रहे हैं.
तस्लीमुद्दीन के बेटे और पूर्व सांसद सरफराज आलम इस बार जन सुराज पार्टी से अपनी उम्मीदवारी पेश कर रहे हैं, तो पिछली बार के विधायक शाहनवाज आलम राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के टिकट से प्रत्याशी हैं. बड़े भाई सरफराज और छोटे भाई शाहनवाज के अलावा जनता दल यूनाइटेड की ओर से पूर्व मंत्री मंजर आलम अपनी उम्मीदवारी पेश कर रहे हैं.
सभी प्रमुख प्रत्याशियों के सरनेम आलम
साल 2020 के विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवौसी की पार्टी एआईएमआईएम ने सीमांचल की 5 सीटें जीतकर तहलका मचाया था उसमें जोकीहाट सीट भी शामिल थी. हालांकि पिछले चुनाव में एआईएमआईएम के टिकट पर जीत हासिल करने वाले शाहनवाज आलम अब आरजेडी में हैं तो ओवैसी ने इस बार यहां से पार्टी के 5 बार के प्रमुख मुर्शीद आलम को चुनावी समर में उतारा है.
मुर्शीद आलम के उतरने से मुकाबले में रोमांच आ गया है. साथ ही जन सुराज, एआईएमआईएम, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड की ओर से मैदान में उतरे सभी प्रत्याशियों के सरनेम आलम ही है.
पहले एचडी देवगौड़ा फिर फिर मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रहे मोहम्मद तस्लीमुद्दीन 5 बार सांसद चुने गए तो वह कई बार विधायक भी रहे. जोकीहाट सीट से वह 5 बार विधायक बने. पिता की मौत से पहले मोहम्मद सरफराज आलम साल 1996 में राजनीति में एंट्री कर गए थे.
4 बार के विधायक रहे सरफराज आलम
सरफराज आलम को 4 बार जोकीहाट विधानसभा सीट से जीत हासिल हुई. इसके अलावा तत्कालीन अररिया सांसद तस्लीमुद्दीन के निधन के बाद, साल 2018 में कराए गए उपचुनाव में भी वह यहां से सांसद चुने गए. हालांकि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी के टिकट पर उतरे सरफराज को बीजेपी के प्रदीप कुमार सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा. इसी तरह 1996 में उपचुनाव के जरिए सरफराज पहली बार विधानसभा पहुंचे.
1996 के अलावा 2000, 2010 और 2015 में विधानसभा चुनाव में उन्हें जोकीहाट से प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला. हालांकि सरफराज इस दौरान कई पार्टियों से टिकट से चुनाव लड़े. पहली बार जनता दल तो दूसरी बार राष्ट्रीय जनता दल के टिकट से विजयी हुए तो तीसरी और चौथी बार वह जनता दल यूनाइटेड के उम्मीदवार बने. हालांकि साल 2018 में जब जनता दल यूनाइटेड महागठबंधन छोड़कर बीजेपी के एनडीए में आ गए, तो उन्होंने जेडीयू से नाता तोड़ लिया और फिर से आरजेडी में शामिल हो गए.
हालांकि, एआईएमआईएम उम्मीदवार के रूप में सरफराज के छोटे भाई शाहनवाज आलम की आरजेडी के टिकट पर साल 2018 के उपुचनाव में मिली जीत और 2024 के लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से उन्होंने फिर से पार्टी छोड़ दी. आरजेडी छोड़ने के कुछ ही दिन पहले सरफराज आलम प्रशांत किशोर की मौजूदगी में जन सुराज पार्टी में शामिल हो गए. जन सुराज ने सरफराज को इस चुनाव में अपना उम्मीदवार बनाया है. सरफराज राज्य सरकार में भवन निर्माण विभाग समेत कई अहम विभागों में मंत्री भी रहे हैं. आरजेडी की ओर से सरफराज के छोटे भाई शहनवाज आलम मैदान में हैं.
शाहनवाज की 2020 में राजनीति में एंट्री
तस्लीमुद्दीन के छोटे बेटे शाहनवाज आलम ने 2020 के विधानसभा चुनाव में जोकीहाट की राजनीति में एंट्री की. उन्होंने चुनाव में अपने बड़े भाई आरजेडी के प्रत्याशी सरफराज को हराया था. पिछले चुनाव में शाहनवाज को 59,596 वोट मिले जबकि सरफराज को 52,213 वोट आए थे. तीसरे नंबर पर बीजेपी के रंजीत यादव रहे जिनके खाते में 48,933 आए.
लेकिन जेडीयू जब एनडीए से फिर अलग हो गई तो सरफराज आलम आरजेडी में शामिल हो गए. ऐसे में बिहार में सत्ता परिवर्तन हुआ और नीतीश कुमार की अगुवाई में महागठबंधन की सरकार बनी. इस सरकार में शाहनवाज बिहार का आपदा प्रबंधन विभाग के मंत्री बनाए गए.
20 साल बाद JDU ने मंजर को दिया मौका
जेडीयू की ओर से जोकीहाट सीट पर मंजर आलम को उतारा गया है, वह शुरू से ही नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू में रहे. मंजर आलम को 2000 के चुनाव में आरजेडी के सरफराज आलम के हाथों हार मिली थी, लेकिन 2005 के चुनाव में मंजर आलम ने जीत हासिल की और बिहार सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के मंत्री भी बनाए गए.
हालांकि मंजर को साल 2010 और 2015 के चुनाव में जेडीयू की ओर से टिकट नहीं दिया गया और इन दोनों ही चुनावों में जेडीयू के उम्मीदवार सरफराज आलम ने जीत हासिल की. पिछले विधानसभा चुनाव में गठबंधन के तहत यह सीट बीजेपी के खाते में चली गई और मंजर आलम को यहां से फिर उतरने का मौका नहीं मिला. इस चुनाव में ओवैसी की एआईएमआईएम के शाहनवाज आलम ने अपने भाई आरजेडी के प्रत्याशी सरफराज को हराया था. अब 20 साल के लंबे इंतजार के बाद जेडीयू ने मंजर आलम पर फिर से भरोसा जताया और इस बार के चुनाव में जोकीहाट से टिकट दे दिया.
अररिया जिले की जोकीहाट विधानसभा सीट पर मुस्लिम वोटर्स का जोरदार दबदबा है. जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र में 65 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटर्स की संख्या है. यही वजह है कि हर बार के चुनाव में मुस्लिम प्रत्याशी को ही जीत मिलती रही है. इस सीट पर तस्लीमुद्दीन के परिवार का खासा दबदबा भी दिखता है. यहां हुए 16 चुनावों में से तस्लीमुद्दीन और उनके बेटों को कुल 11 बार जीत हासिल हुई.
