प्लाज्मा थैरेपी हो रहा है कारगर साबित लेकिन यह कोरोना संक्रमण को खत्म तो नहीं कर सकता पर जब तक कोई वैक्सीन तैयार नहीं हो जाती तब तक कुछ भी करके इस संक्रमण से लोगो की जान बचानी पड़ेगी| स्थिति को देखते हुए डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि कोरोना का कहर और खतरनाक रूप ले सकता है तथा इसका टीका तैयार होने में अभी कम से कम एक साल का वक्त लग सकता है|
चीन के शेनझेन में रक्त प्लाज्मा हुआ कारगर साबित….
इस साल जनवरी से मार्च के बीच,चीन के शेनझेन के थर्ड पीपुल्स अस्पताल के डॉक्टरों की एक टीम ने गंभीर श्वसन संकट से पीड़ित,कोविड-19 के पांच रोगियों पर रक्त प्लाज्मा चिकित्सा का प्रयोग किया| टीम ने अगले कुछ सप्ताह मरीजों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करने में बिताए| इस प्रयोग के नतीजे आशाजनक रहे|
कोविड-19 से उबरकर आए व्यक्तियों से लिए गए प्लाज्मा को चढ़ाने के 10 दिनों के भीतर,पांच रोगियों में से तीन की स्थिति में सुधार देखा गया और उनके शरीर में वायरस का लोड कम हुआ|आखिरकार उन्हें अस्पताल से छुट्टी भी दे दी गई| यह अभी शुरुआती आकलन है,पर मेडिकल विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी अनुभव ने दर्शाया है कि रक्त प्लाज्मा चिकित्सा कोविड-19 महामारी के रोगियों में महत्वपूर्ण ऐंटीबॉडी विकसित करने में मददगार हो सकती है| कोविड-19 ने 22 अप्रैल तक दुनिया में 2,585,193 लोगों (भारत में 19,818) को संक्रमित कर दिया और 1,79,838 लोगों की जान ले ली (भारत में 652)|
हमारे रक्त का करीब 55 फीसद भाग तरल पदार्थ से बना है जिसे प्लाज्मा कहा जाता है, शेष लाल और श्वेत रक्त कोशिकाएं तथा प्लेटलेट्स हैं जो उसी प्लाज्मा में तैरते रहते हैं| जब प्लाज्मा को निकाला जाता है,तो उसमें मौजूद कोशिकाओं को मशीन के जरिये फिल्टर किया जा सकता है और दाता (डोनर) को वापस लौटा दिया जाता है| इस प्लाज्मा में अन्य वायरस की मौजूदगी की जांच होती है और उसके बाद इसे उपयोग के लिए सुरक्षित घोषित किया जाता है|
प्लाज्मा निकालने में अस्पतालों में अनुमानित प्रति डोनर 12,000-15,000 रुपए का खर्च आएगा| तिरुवनंतपुरम के श्री चित्रा तिरूनल इंस्टीट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज ऐंड टेक्नॉलोजी की निदेशक डॉ. आशा किशोर कहती हैं,”स्वस्थ हो चुके मरीजों के शरीर से जो रक्त हमने लिया है उसमें कोविड के सेल्स मौजूद नहीं हैं,यह सुनिश्चित करने के लिए हमें दो हफ्ते का अंतराल रखना होता है|उसके बाद ही उसमें से प्लाज्मा निकालना चाहिए| तब तक आइजीजी (इम्युनोग्लोबुलिन जी) ऐंटीबॉडी विकसित हो चुके होंगे|
ये अगले व्यक्ति को कोविड-19 के खिलाफ वैसा ही ऐंटीबॉडी बनाने में मदद कर सकते हैं|यह उपचार कितना प्रभावी और कितना सुरक्षित है,यह तय होना अभी बाकी है| भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) को 18 अप्रैल को केंद्रीय दवा नियामक से कोविड रोगियों के प्लाज्मा उपचार के परीक्षणों को शुरू करने के लिए अनुमोदन मिल गया है और इसे इस उपचार को परखने की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है|
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अगर इससे वांछनीय नैदानिक नतीजे दिखते हैं,तो इस उपचार को उन लोगों पर भी आजमाया जा सकता है जिनमें मध्यम लक्षण दिखते हैं फिलहाल अमेरिका और ब्रिटेन में सिर्फ गंभीर कोविड मरीजों पर इस उपचार को आजमाने की अनुमति है| भारत में अभी किसी भी व्यक्ति पर इसका प्रयोग शुरू नहीं हुआ है| अप्रैल के अंत से शुरू होने वाले परीक्षणों का हिस्सा बनने के लिए 99 भारतीय संस्थानों ने रुचि दिखाई है|
जिन उपचारों पर आगे बढऩे की बात हो रही है वे सीमित अध्ययनों पर आधारित हैं, पर स्वास्थ्य आपातकाल को देखते हुए उसका उपचार तलाशने में कोई कसर बाकी नहीं रखी जानी चाहिए|
भारतीय फार्मास्युटिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. टी.वी. नारायण कहते हैं,”दुनियाभर में ड्रग ट्रायल बहुत तेजी से हो रहे हैं,” प्रभावी उपचार खोजने के लिए हजारों मौजूदा मॉलीक्यूल्स (अणुओं) को स्कैन किया जा रहा है,ताकि एक मॉलेक्यूल ऐसा मिल जाए जो इस वायरस को खत्म कर सके या कम से कम इसके गंभीर प्रभावों को नियंत्रित या कम कर सके|
कोविड-19 की वैक्सीन बनने में अभी लग सकता है लम्बा समय….
बहुत तेजी से मंजूरी मिलने के बावजूद,नई दवा के विकसित होने,उसके परीक्षण और फिर निर्माण शुरू करने में 12 साल तक लग सकते हैं| चूंकि कोई कोविड-19 वैक्सीन अभी भी हमसे एक साल दूर है,इसलिए पुरानी दवाओं के संयोजनों से उपचार के तरीके खोजना अल्पावधि में सबसे अच्छा दांव हो सकता है|
हैदराबाद के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल एजुकेशन ऐंड रिसर्च में फार्माकोलॉजी और टॉक्सिकोलॉजी के सहायक प्रोफेसर डॉ. आशुतोष कुमार कहते हैं-”किसी नए मॉलीक्यूल को सेल कल्चर्स,पशुओं और बेतरतीब (रैंडम) ढंग से चुने गए मनुष्यों के समूहों पर सघन परीक्षण की जरूरत होती है ताकि यह पता लगाया जा सके कि ऐंजाइम को बाधित करने या वायरस को मारने के लिए इसकी कितनी मात्रा जरूरी है,यह कितना सुरक्षित है और इसके दुष्प्रभाव क्या हैं|”
जश्न मनाना अभी जल्दबाजी होगी…..
पिछले दिसंबर में वुहान में इसका प्रकोप शुरू होने के बाद से,कोविड-19 ने लोगों को तीन तरह से संक्रमित किया है….कुछ में कोई लक्षण नहीं हैं,करीब 80 फीसद में बुखार या खांसी जैसे मामूली लक्षण दिखे और शेष गंभीर श्वसन बीमारी या साइटोकिन स्टॉर्म से पीडि़त हैं,जिसमें शरीर की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली ही अंगों को नुक्सान पहुंचाने लगती है| बीमारी किस तरह नुक्सान पहुंचाएगी,यह व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली पर निर्भर करता है|
आइसीएमआर ने इस पर ध्यान देते हुए कोविड को रोकने और ठीक करने के लिए 21 अप्रैल को,इम्यूनोलॉजी आधारित दृष्टिकोणों के लिए तीव्र अनुसंधान प्रस्तावों को आमंत्रित किया| इस तरह के शोध से उपचार की नई धारा मिल सकती है|विश्वस्तर पर चल रही इलाज की खोज में सहायता के लिए,चीन में शोधकर्ताओं ने 9 अप्रैल को वायरस के एम प्रोटीज की संरचना प्रकाशित की|
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इसने कई शोध फर्मों को मौजूदा दवाओं की पहचान करने के लिए कंप्यूटर की सहायता से दवा का डिजाइन तैयार करने और उपलब्ध दवाओं में से उस दवा की पहचान में मदद की है जो ऐंजाइम को बाधित कर सकते हैं| ऐंटीवायरल ड्रग्स आमतौर पर प्रोटीन को लक्षित करते हैं,जो वायरस के लिए मानव कोशिकाओं से प्रोटीन को संश्लेषित करने के लिए आवश्यक हैं और इसी से वे अपनी संख्या बढ़ाते जाते हैं|
क्या है कोरोना वायरस के दूसरे लक्षण…?
नए कोरोना वायरस में,दवाओं के जरिए दो मुख्य प्रोटीन को लक्ष्य किया जा रहा है आरएनए पर निर्भर आरएनए पॉलीमरेज और एम प्रोटीज| भले ही कई दवाओं का परीक्षण किया जा रहा है (जापानी इन्फ्लूएंजा की दवा फेविपिरैविर से मिर्गी की दवा वैल्प्रोइक एसिड तक),तीन दवाएं दुनियाभर में चल रहे परीक्षणों में सबसे आगे हैं| हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (एचसीक्यू),लोपिनेविर व रिटोनाविर और रेमेडिसिविर|
विश्व स्वास्थ्य संगठन ग्लोबल सॉलिडैरिटी ट्रायल में भी मुख्य रूप से इन्हीं दवाओं का परीक्षण हो रहा है| वर्तमान में तीन दवाओं का अध्ययन सिर्फ छोटे समूहों में किया गया है|
शुरुआती शोध आशाजनक है,पर लोगों के एक बड़े समूह पर नियंत्रित,डबल-ब्लाइंड परीक्षण किसी दवा की दीर्घकालिक गुण और विषाक्तता का अनुमान लगाने के लिए सबसे बढ़िया मानक माना जाता है|
दवा के परीक्षण में अलग-अलग उम्र,रोग के विभिन्न चरणों,लिंग,नस्लों और ऐसी कई अन्य चीजों को शामिल करने की जरूरत है| डॉ. आशुतोष कहते हैं,”दवा विकसित करने वाले और जिस व्यक्ति पर दवा का परीक्षण किया गया है,उनके किसी भी तरह के पूर्वाग्रह की संभावना को खत्म करने के लिए,सभी परीक्षणों का चयन बेतरतीब होना चाहिए|UP के इस गांव में फ्रांसीसी परिवार जप रहा ओम नम: शिवाय, ताकि मिले कोरोना से मुक्ति Gorakhpur
यानी परीक्षक को पता न हो कि ट्रायल के लिए किस शख्स को चुना जाएगा. परीक्षणों के लिए एक प्लेसीबो समूह,जिन लोगों को दवा नहीं दी जाती है,ताकि झूठे सकारात्मक नतीजों की कोई संभावना न रहे|”
हेपेटाइटिस सी के लिए 2009 में विकसित और फिर 2014 में इबोला के लिए अमेरिकन दवा कंपनी गिलिएड का तैयार किया गया रेमेडेसिविर को सबसे आशाजनक बताया जा रहा है| यह द न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (टीएनइजेएम) 10 अप्रैल को प्रकाशित गंभीर रूप से पीड़ित कोविड के 53 रोगियों को दिए गए रेमेडिसिविर के अध्ययन पर आधारित है|
अध्ययन कहता है कि 68 फीसद रोगियों की हालत में सुधार हुआ है पर यह बहुत छोटा नमूना है| चीन में मानव परीक्षणों के हाल के दो प्रयास नामांकन की कमी के कारण विफल रहे हैं. गिलिएड के चरण 3 के दो परीक्षण अभी चल रहे हैं|
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1950 के दशक में संश्लेषित मलेरिया की दवा एचसीक्यू को,फ्रांस और चीन में हुए दो छोटे अध्ययनों के आधार पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोविड मरीजों को देने की वकालत की| पता चला कि दवा में ऐंटीवायरल गुण हैं और एजिथ्रोमाइसिन के साथ उसने कोविड का वायरल लोड कम कर दिया|
पर यह अध्ययन न रैंडम तरीके से किया गया और न ही परीक्षण का आकार बड़ा था जिससे इसे प्रामाणिक उपचार माना जा सके| सबसे बड़ा डर एचसीक्यू के साइडइफेक्ट्स हैं—धड़कन बढ़ना,अंधापन, माइग्रेन और कुछ मामलों में मौत तक नोवार्टिस ने अमेरिका में इसके मानव परीक्षण की घोषणा की है|लोपिनेविर,रिटोनाविर जैसी एचआइवी की दवाइयों के संयोजन को भी कोविड के उपचार के रूप में देखा जा रहा है|
वुहान के जिन यिन-टैन अस्पताल में 199 मरीजों पर हुए क्लिनिकल परीक्षण में पाया गया कि दवा ने कोविड के लक्षणों को तेजी से कम किया| पर टीएनइजेएम में प्रकाशित शोध से पता चलता है कि इससे मरीजों के लिए नैदानिक परिणामों में सुधार नहीं हुआ| डॉ. नारायण कहते हैं,”दुनिया में कोविड की दवा को लेकर अंतहीन बातें सुनी जा रही हैं| कौन-सी दवा इस वायरस को खत्म कर सकती है,पक्के तौर पर अभी कुछ कहना जल्दबाजी होगी|”
तीन दवाओं के मानव परीक्षणों के नतीजे मई-जून में आने की उम्मीद है| भारत डब्ल्यूएचओ परीक्षणों में शामिल होने में दिलचस्पी ले रहा है| यह औपचारिक रूप से अभी बाकी है|अगर किसी दवा को कोविड-19 पर उच्च प्रभावकारी पाया जाता है,तो भारत इसे बनाने के लिए अच्छी स्थिति में होगा| डॉ. नारायण कहते हैं,”हम मलेरिया और ऐंटी-एचआइवी दवाओं की वैश्विक आपूर्ति का 60-80 फीसद उत्पादन करते हैं|”
हो गई दवाओं तक पहुंच…..
भारत को दवाओं के मूल्य निर्धारण में समस्याओ का सामना करना पड़ सकता है| 2018 में,पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के एक शोध से पता चला है कि दवाओं पर हैसियत से ज्यादा खर्च करने को मजबूर होने के कारण 5.5 करोड़ भारतीय गरीबी में धकेल दिए गए थे| मलेरिया और ऐंटी-एचआइवी दवाओं के लिए पेटेंट की अवधि खत्म हो गई है,गिलिएड को इसी साल फरवरी में भारत में रेमेडिसिविर के लिए पेटेंट मिला…
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क्या है वैकल्पिक उपचार…..
आयुष मंत्रालय ने कोविड-19 के वैकल्पिक उपचार के लिए करीब 2,000 होम्योपैथी और आयुर्वेद डॉक्टरों से सुझाव मांगे हैं| इसके लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया गया है| केंद्रीय आयुष राज्यमंत्री श्रीपद नाइक कहते हैं-”चीन एलोपैथिक दवाओं के साथ पारंपरिक चिकित्सा का उपयोग करता रहा है|
भारतीय पारंपरिक इलाज न केवल प्रतिरक्षा को बढ़ाते हैं,बल्कि उनमें जबरदस्त ऐंटीवायरल गुण भी होते हैं|” आयुष जिन दवाओं पर विचार कर रही है उनमें 30सी पोटेंसी वाली होम्योपैथिक दवा आर्सेनिकम एल्बम प्रमुख है|चीन और दक्षिण कोरिया में स्वस्थ हुए मरीजों में फिर से यह बीमारी उभरने की जानकारियां मिली हैं और डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि कोविड का ‘क्रूरतम प्रकोप अभी बाकी है|’ अगले कुछ सप्ताह अहम हैं,क्योंकि बड़े परीक्षणों के नतीजे बताएंगे कि क्या ऐसी कोई दवा खोज ली गई है जो हमें इस घातक वायरस से निजात दिला सके|