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    Home » World Thalassemia Day: एक वंशानुगत बीमारी, जिसके लिए जागरूकता जरूरी

    World Thalassemia Day: एक वंशानुगत बीमारी, जिसके लिए जागरूकता जरूरी

    May 8, 2021 बड़ी खबर 5 Mins Read
    World Thalassemia Day: एक वंशानुगत बीमारी, जिसके लिए जागरूकता जरूरी
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    World Thalassemia Day दुनिया में अलग-अलग जलवायु और पर्यावरण के हिसाब से कई अलग-अलग बीमारियां है, लेकिन कुछ ऐसी बीमारियां हैं, जो दुनिया के सभी देशों में किसी न किसी तरह से मौजूद हैं। इनमें से कुछ वंशानुगत बीमारी भी हैं, जो कई बार जानकारी के अभाव में एक से दूसरे में स्थानांतरित होती रहती हैं और कई बार मृत्यु का कारण भी बन जाती हैं। उनमें से ही एक है थैलेसीमिया। 

    थैलेसीमिया के बारे में लोगों को जागरूक करने, पीड़ितों को याद करने और बीमारी से जूझने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है। थैलेसीमिया एक अनुवांशिक रक्त से जुड़ा रोग है, जिसमें शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है।

    हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक प्रोटीन अणु है, जो ऑक्सीजन को वहन करता है, लेकिन बड़ी संख्या में लाल रक्त कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं, जिससे शरीर में रक्त की कमी होने लगती है और कई बार समय पर रक्त न चढ़ने या उचित इलाज नहीं मिलने पर मृत्यु हो जाती है।

    थैलेसीमिया दिवस मनाने का कारण >बीमारी, इसके लक्षण और इसके साथ जीने के तरीकों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए।>यदि व्यक्ति थैलेसीमिया से पीड़ित है, तो विवाह से पहले डॉक्टर से परामर्श करना जरूरी है।>खून की जांच करवाए बिना ही शादी कर ली है तो गर्भावस्था के 8 से 11 हफ्ते के भीतर ही अपने डीएनए की जांच करवा लेनी चाहिए।

    >बच्चों के स्वास्थ्य, समाज और पूरे विश्व में टीकाकरण के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए।>टीकाकरण के बारे में गलत धारणाओं का निवारण। थैलेसेमिया के लक्षण थैलेसीमिया एक वंशानुगत बीमारी है लेकिन कई बार बीटा थैलेसीमिया और अल्फा थैलेसीमिया से पीड़ित अधिकांश शिशुओं में 6 महीने की उम्र के लक्षण नहीं नजर आते क्योंकि नवजात शिशुओं में एक अलग प्रकार का हीमोग्लोबिन होता है, जिसे भ्रूण हीमोग्लोबिन के रूप में जाना जाता है और 6 महीने के बाद सामान्य हीमोग्लोबिन भ्रूण के प्रकार को बदलना शुरू कर देता है और लक्षण दिखाई देने लगते है।

    जैसे- अनिद्रा और थकान, सीने में दर्द, सांस लेने में कठिनाई, ग्रोथ रुक जाना, सिरदर्द, पेट में सूजन, डार्क यूरिन, त्वचा का रंग पीला पड़ जाना इत्यादि। थैलेसीमिया के प्रकार थैलेसीमिया दो तरह का होता है, माइनर थैलेसीमिया और मेजर थैलेसीमिया। थैलेसीमिया मेजर के रोगियों में गंभीर एनीमिया होता है, जिसे उपचार के लिए नियमित रूप से रक्त चढ़ाने की आवश्यकता होती है।

    World Thalassemia Day

    यह भी पढ़े:- अमेरिकी उपराष्ट्रपति – भारत में कोरोना को खत्म करने के लिए US सहायता को तैयार

    माइनर का शिकार व्यक्ति सामान्य जीवन जीता है और उसे कभी इस बात का आभास तक नहीं होता कि उसके रक्त में कोई दोष है। हालांकि आगे चलकर शादी करने के बाद उसके बच्चों में थैलेसीमिया मेजर रूप में भी आ सकता है। यह पति-पत्नी या दोनों में पाया जा सकता है। यह बीमारी भारत सहित यूरोप और एशिया के कई देशों में पाई जाती है। 2013 तक, लगभग 280 मिलियन लोगों में थैलेसीमिया पाया गया, जिसमें लगभग 4,39,000 गंभीर रूप से ग्रस्त थे।

    यह इटली, ग्रीक, मध्य पूर्वी, दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी मूल के लोगों में सबसे आम है। भारत में तथ्य और आंकड़े भारत में थैलेसीमिया का पहला मामला 1938 में सामने आया था। अगस्त 2020 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने एक कार्यक्रम में बताया कि वर्तमान समय में दुनिया के लगभग 270 मिलियन लोग थैलेसीमिया से पीड़ित हैं।

    दुनिया में थैलेसीमिया मेजर बच्चों की सबसे बड़ी संख्या भारत में है, जिनकी संख्या लगभग 1 से 1.5 लाख है, और थैलेसीमिया मेजर के साथ लगभग 10,000-15,000 बच्चों का जन्म प्रत्येक वर्ष होता है।  थैलेसीमिया का इलाज  थैलेसीमिया का इलाज रोग की गंभीरता पर निर्भर करता है। कई बार दवाएं और सप्लीमेंट्स या बोन मैरो ट्रांसप्लांट (बीएमटी) या सर्जरी की जरूरत पड़ती है।

    हालांकि, इस रोग से प्रभावित सभी बच्चों के माता-पिता के लिए बीएमटी बहुत ही मुश्किल और महंगा है। इसलिए, उपचार का मुख्य स्वरूप बार-बार ब्लड ट्रांसफ्यूजन (रक्‍ताधान) कराना है, इसके बाद आयरन के अत्यधिक भार को कम करने के लिए नियमित रूप से आयरन किलेशन थेरेपी की जाती है, जिसके कारण कई ब्लड ट्रांसफ्यूजन होते हैं, लेकिन ज्यादातर थैलेसीमिया से ग्रसित बच्चों को एक महीने में 2 से 3 बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है।

    भारत में भी ऐसे बच्चों की संख्या ज्यादा है।  नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल के अनुसार भारत में 2023 ब्लड बैंक हैं जो ब्लड डोनर से 78 प्रतिशत रक्त प्राप्त करते हैं, लेकिन कोरोना संकट के दौर में न सिर्फ ब्लड बैंक प्रभावित हुए बल्कि थैलेसीमिया के मरीजों को भी परेशानी उठानी पड़ी।   

    रेडक्रॉस में थैलेसीमिया स्क्रीनिंग और परामर्श केंद्र

    हाल ही में इंडियन रेडक्रॉस सोसाइटी के राष्ट्रीय मुख्यालय के ब्लड बैंक में थैलेसीमिया स्क्रीनिंग और परामर्श केंद्र की शुरुआत की गई है। इससे प्रभावित लोगों को पर्याप्त चिकित्सा प्रदान करने का अवसर प्राप्त होगा, जिससे कि वे बेहतर जीवन व्यतीत कर सकें और वाहक स्क्रीनिंग, आनुवंशिक परामर्श और जन्म से पूर्व निदान के माध्यम से हीमोग्लोबिन पैथी से प्रभावित बच्चों के जन्म को रोका जा सकेगा।

    Image Source:- www.google.com

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