Chhath Puja 2023: गेहूं का ठेकुआ, चावल के लड्डू, खीर ,अन्नानास, नींबू और कद्दू ये सुनकर तो आप समझ ही गए होंगे की आज हम किस पर्व की बात कर रहे है. जी हां हम बात कर रहे है छठ पर्व की. छठ सिर्फ एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है, जो पूरे चार दिन तक चलता है. उत्तर प्रदेश और खासकर बिहार में छठ का विशेष महत्व है. नहाए-खाए से इसकी शुरुआत होती है, जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होती है.
36 घंटो तक करना पड़ता है निर्जला व्रत
इस शुभ छठ पूजा पर जिस देवी की पूजा की जाती है, उसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है. छठी मैया को वेदों में उषा भी कहा गया है. क्या आपको पता है छठ पूजा एकमात्र हिंदू पूजा त्योहार है जिसमें किसी भी पुजारी की आवश्यकता नहीं होती है. इस पर्व को मनाने के लिए सिर्फ स्वच्छता और पवित्रता होनी चाहिए.
ये कहना गलत नहीं होगा कि यह पर्व सबसे कठिन त्योहारों में से एक है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें व्रत करने वाले भक्तों को 36 घंटो तक निर्जला व्रत करना पड़ता है यानी इस दौरान वह पानी तक नहीं पीते. इस व्रत के नियम- कानून बहुत कड़े माने जाते हैं इसलिए यह सबसे कठिन व्रत में गिना जाता है.
मन्नतों का पर्व है छठ
छठ को मन्नतों का पर्व भी कहा जाता है. इसके महत्व का इसी बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इसमें किसी गलती के लिए कोई जगह नहीं होती. इसलिए शुद्धता और सफाई के साथ तन और मन से भी इस पर्व में जबरदस्त शुद्धता का ख्याल रखा जाता है. इस त्योहार को जितने मन से महिलाएं रखती हैं पुरुष भी पूरे जोशो-खरोश से इस त्योहार को मनाते हैं औऱ व्रत रखते हैं.
17 नवंबर से हो रही है छठ पूजा की शुरुआत
- छठ पूजा की शुरुआत 17 नवंबर, शुक्रवार से हो रही है इस दिन नहाय खाय किया जाता है.
- 18 नवंबर, शनिवार को खरना किया जाएगा.
- 19 नवंबर, रविवार को छठ पूजा की पहली अर्घ्य यानी संध्या अर्घ्य दी जाएगी.
- 20 नवंबर, सोमवार को छठ पूजा की दूसरी और आखिरी अर्घ्य यानी उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा.
कुछ लोग 4 दिन तक रखतें हैं उपवास
ऐसा माना जाता है कि छठ पूजा के उपासक पवित्र स्नान और संयम की अवधि का पालन करते हैं. वे चार दिनों के लिए मुख्य रूप से परिवार से अलग हो जाते हैं. पूरी अवधि के दौरान उन्हें शुद्ध आत्मा माना जाता है और वे फर्श पर सोते हैं. छठ पूजा के दौरान 4 दिनों तक उपवास रखने वाले लोगों को व्रती के कहा जाता है.
इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था. कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे. सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने. आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है.
इसलिए दिया जाता है सुर्य को अर्घ्य
छठ पूजा में सूर्य देव, उनकी बहन छठी मैया, उनकी पत्नी उषा, प्रत्युषा की पूजा करने की परंपरा है. छठी मैया ब्रह्मा जी की पुत्री है. इन्हें षष्ठी माता भी कहा जाता है, जो संतानों की रक्षा करने वाली देवी मानी जाती है. छठ में डूबते और उसके बाद उगते सूरज को अर्घ्य देने का यह मतलब होता है कि जो डूबा है उसका उदय होना भी निश्चित है. यानी अगर अभी परिस्थितियां खराब है तो वह अच्छी भी होगी बस सयंम रखने की जरूरत है.
छठ व्रतीयों की सबसे कठिन साधना है ‘दंड प्रणाम
चार दिनों के इस व्रत में छठ व्रतीयों का सबसे कठिन साधना ‘दंड प्रणाम’ है, जिसमें व्रती छठ घाटों तक जमीन पर लेटकर पहुंचती हैं. यह साधना सबसे कठिन नियम मानी जाती है और इसे मनोकामनाएं पूर्ण होने पर ही किया जाता है. इसके पीछे मान्यता यह है कि दंड प्रणाम के जरिए अपना शरीर भगवान सूर्य की आराधना में समर्पित करना, जिसे बड़े ही श्रद्धा के साथ महिला-पुरुष पूरा करते हैं.
दंड प्रणाम करने की अलग विधि है. इस दौरान व्रती हाथ में एक लकड़ी का टुकड़ा रखते हैं और जमीन पर पूरी तरह लेटकर अपनी लंबाई के बराबर निशान जमीन पर लगाते हैं. इसके बाद उसी निशान पर खड़े होकर दंड प्रणाम करते हैं. वर्ती यह दंड प्रणाम करते हुए शाम के अर्घ्य और सूर्योदय के अर्घ्य के दौरान घर से छठ घाट तक करते हैं.
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