भारतीय सुरक्षाबलों ने ‘ऑपरेशन जैकबूट’ के अन्तर्गत हिजबुल मुजाहिद्दीन के चीफ कमांडर रियाज नाइकू को मार गिराया।इस तरह भारतीय सुरक्षाबलों ने कर्नल आशुतोष समेत 5 सैन्यकर्मियों की शहादत का बदला ले लिया हैं।नाइकू,ऑपरेशन जैकबूट की सूची में आखिरी बड़ा आतंकवादी था,जिसे उसके पैतृक गाँव में ही घेरकर सुरक्षाबलों ने मार गिराया। डबल-ए श्रेणी में सूचीबद्ध नायकू पर 12 लाख का इनाम था। आतंकवाद के पोस्टर बाॅय बुरहान वानी की जगह लेने वाले रियाज नायकू ने विदेशी आतंकवादियों को पृष्ठभूमि में धकेल दिया था, क्योंकि ये कश्मीरी आतंकी स्थानीय युवाओं को आतंकवाद के रास्ते पर ले जाने में लगातार कामयाबी हासिल करने लगे थे।
राह चुनना एक मकसद
इस कारण कई पढ़े लिखे कश्मीरी युवकों के लिए आतंक की राह चुनना एक मकसद बनने लगा।रियाज ने पहली जनवरी 2019 से अप्रैल 2020 तक दक्षिण कश्मीर में 55 स्थानीय लड़कों को आतंकी बनने के लिए प्रेरित किया।इनमें से दो दर्जन लड़के इसी साल आतंकी संगठन के साथ जुड़े हैं ।इनमें से कुछ सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए हैं ,जबकि 8 लड़कों को सुरक्षा बलों ने वापस लिया है ।
हाल ही में हंदवाड़ा में लगातार 2 दिन में आतंकवादी हमले हुए।पहले रविवार को सुरक्षाबलों के 5 और अगले दिन अर्थात सोमवार को 3 जवान शहीद हुए।नायकू के मारे जाने के बाद हिजबुल मुजाहिद्दीन के पाकिस्तान बैठे सरगना सैयद सलाउद्दीन के लिए सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है।
आतंकवादियों से पूर्णतः मुक्त करा सकता है
पाकिस्तान अपने नापाक इरादों से घाटी में सीमा सीमापार आतंकवाद को लगातार गति प्रदान कर रहा है।सरकार को पाकिस्तान को ऐसा मुंहतोड़ जवाब देना चााहिए कि वह पुनः इस तरह की कार्रवाई अंजाम नहीं दे ।भारत ने पूर्व में पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे कठोर कदम उठाएं हैं, परन्तु आवश्यकता है कि अब भारत उससे भी अधिक कठोर कार्यवाई पाकिस्तान पर करें।इसके साथ ही भारत को कूटनीतिक दृष्टि से भी पाकिस्तान पर लगातार दबाव बनाए रखना चाहिए ।सर्जिकल स्ट्राइक्स के अतिरिक्त भारत के पास ‘ सीमित युद्ध ‘ के विकल्प भी उपलब्ध हैं ।भारत सीमावर्ती क्षेत्रों में बल प्रयोग कर उसे आतंकवादियों से पूर्णतः मुक्त करा सकता है।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद स्थिति
कश्मीर में पिछले वर्ष जब अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त कर केन्द्र शासित प्रदेश बनाया गया था,तो यह दावा किया गया था कि इससे आतंकवाद पर काबू पाया जा सकेगा।परन्तु अगर आकड़ों के आधार पर विश्लेषण करें तो स्थिति दूसरी नजर आती है ।केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री जी. कृष्ण रेड्डी ने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कहा कि 5 अगस्त 2019 और 10 मार्च 2020 के बीच 79 आतंकवादी हमले हुए ।रेड्डी ने लोकसभा में यह जानकारी भी दी थी कि 5 अगस्त 2019 और 4 फरवरी 2020 के बीच हुए आतंकवादी हमलों में सुरक्षा बलों के 82 जवान और अफसर शहीद हो गए।स्पष्ट है कि इसके पूर्व 2016 में भी सरकार ने नोटबन्दी के निर्णय के दौरान बताया था कि इससे कश्मीर में आतंकवाद नियन्त्रित होगा।इस सन्दर्भ में भी गृह मंत्रालय के आकड़े काफी दिलचस्प हैंं।
आतंकवाद पर काबू पाया जा सकेगा
गृह मंत्रालय की 2017 की सालाना रिपोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर में 342 आतंकवादी हमले हुए,जो 2016 में हुए 322 हमलों से ज्यादा थे।इतना ही नहीं,2016 में जहाँ आतंकवादी हमलों में 15 लोगों की मौत हुई,वहीं 2017 में 40 आम लोग इन हमलों में मारे गए।आगे के वर्षों में भी यही स्थिति रही।उपरोक्त
विश्लेषण से स्पष्ट है कि नोटबंदी से कश्मीर में आतंकवादी हमलों पर कोई अंकुश नहीं लगा।
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स्थानीय समर्थन को रोकना आवश्यक
हंदवाड़ा एनकाउंटर के चंद दिनों पहले ही केरन सेक्टर में भी एक मुठभेड़ में 5 आतंकवादी मारे गए थे,जबकि पैरा स्पेशल फोर्स यूनिट के 5 जवान भी शहीद हो गए थे।कश्मीर में इस साल मार्च के बाद से आतंकवादी हमलों में काफी इजाफा हुआ है।जम्मू- कश्मीर पुलिस के अनुसार, जनवरी से अब तक 20 सुरक्षाकर्मी आतंकवादी हमलों में शहीद हो चुके हैं।जम्मू कश्मीर पुलिस के अनुसार रमजान के पहले 10 दिनों में ही 14 आतंकवादी मारे गए हैं,जबकि 8 जवान शहीद हो चुके हैं और एक शारीरिक रूप से अक्षम बच्चे की मौत हुई है।कश्मीर में तीन साल पहले सुरक्षाबलों ने “ऑपरेशन ऑलआउट” शुरू किया था,जिसमें सैकड़ों आतंकवादी तथा कुछ शीर्ष आतंकवादी कमांडर भी मारे गए।लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान कश्मीर के कुछ भटके युवाओं को आतंकवाद की ओर लगातार प्रेरित कर रहा है।
पाकिस्तान के ऊपर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स
अनुच्छेद-370 और 35 ए की समाप्ति के बाद कश्मीर के लोगों में जो आक्रोश उत्पन्न हुआ,उसका लाभ उठाने में आतंकी संगठन लगे हुए हैं।कश्मीरी जनता विशेषकर युवाओं में विश्वास बहाली के गंभीर प्रयत्न भारत सरकार द्वारा अब तक शुरू नहीं किया गया है।सरकार संपूर्ण मामले का केवल सैन्य समाधान पर जोर दे रही है,जबकि वहाँ के भटके युवाओं को मुख्यधारा की ओर लाने के लिए और ऊर्जा लगाने की आवश्यकता है।पाकिस्तान के ऊपर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स का दबाव बना हुआ है।
अगर वह इसमें ब्लैक लिस्टेड होता है,तो उसकी संपूर्ण अर्थव्यवस्था बर्बाद हो जाएगी।आतंकवादी घटनाओं के लिए कश्मीर के स्थानीय लोगों को चुनने,उन्हें प्रशिक्षित करने और आगे रखने के पीछे पाकिस्तान की रणनीति यह है कि ऐसा लगे कि यह संपूर्ण मामला स्थानीय है,इसमें स्थानीय लोग हैं और पाकिस्तान इससे जुड़ा हुआ नहीं है।यही कारण है कि पिछले साल जब पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमला हुआ,तो उसमें भी स्थानीय लोगों के शामिल होने की बात खुल कर आई।हमलावर हमले की जगह से महज कुछ किमी की दूरी पर ही रहता था।इसके साथ ही पाकिस्तान आतंकवादी देविंदर सिंह जैसे पुलिसकर्मियों का भी सहारा ले रहा है,जो अत्यंत खतरनाक है।
‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’
पाकिस्तान ने भारत में सीमापार आतंकवाद के फैलाने के लिए ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ बनाया है।सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस आतंकवादी संगठन में कई छोटे-छोटे स्थानीय समूहों के लोग शामिल हैं,लेकिन मुख्य रूप से यह “लश्कर- ए – तैयबा” का फ्रंट है।’द रेजिस्टेंस फ्रंट’ या टीआरएफ का नाम पहली बार अक्टूबर 2019 में सामने आया।सोपोर में 28 अक्टूबर को हुए ग्रेनेड हमले में 19 लोग जख्मी हो गए थे,टीआरएफ ने इसकी जिम्मेदारी ली थी।इस तरह अब स्थानीय लोगों को आतंकवाद की ओर प्रेरित करने का कार्य टीआरएफ को पाकिस्तान ने सौंप दिया है।
अफगानिस्तान में अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते
पाकिस्तान एशिया की बदलती राजनीतिक स्थिति का भी लाभ उठाना चाहता है।अफगानिस्तान में अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते के बाद वहाँ की जमीनी हकीकत बदली है।अब अमेरिका भारत के लिए पाकिस्तान और तालिबान पर पहले की तरह दबाव नहीं बनाएगा,अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी लोगों का ध्यान उस ओर नहीं जाएगा।ऐसे में स्थानीय भारतीय आतंकवादियों की भर्ती कर पाकिस्तान भारत में अपनी गतिविधियाँ बढ़ा सकता है।
“ऑपरेशन ऑलआउट”
विगत में पंजाब का जबरदस्त आतंकवाद भी तभी नियंत्रित हो पाया,जब स्थानीय लोगों का भरपूर समर्थन प्राप्त हुआ।इसलिए सरकार को “ऑपरेशन ऑलआउट” के साथ कश्मीरी जनता में विश्वासबहाली भी करना होगा।लंबे समय तक वहाँँ के जनप्रतिनिधियों के जेल में बंद होने से अविश्वास की खाई और गहरी हुई है।कश्मीर में अभी सक्रिय स्थानीय आतंकवादी कम हैं,इसलिए पाकिस्तान स्थानीय लोगों में अपनी गतिविधियाँ तीव्र करेगा।यही कारण है कि आतंकवादियों ने दक्षिण कश्मीर के बाद अब उत्तरी कश्मीर में अपनी सक्रियता में वृद्धि की है।जब भी घुसपैठ होती है,पहले आतंकवादी उत्तरी कश्मीर पहुँचते हैं और उसके बाद उन्हें छोटे समूहों में दक्षिणी कश्मीर भेज दिया जाता है।ऐसे में आतंकवादियों के लिए आवश्यक है कि वे उत्तरी कश्मीर में अपनी उपस्थिति में वृद्धि करे।
इस बीच सुरक्षाबलों ने मारे गए आतंकवादियों के लिए एक नई नीति बनाई है। नई नीति के अनुसार, मारे गए आतंकवादियों के शव परिजनों नहीं सौंपे जाएँगें।ज्ञात हो,रियाज नाइकू आतंकियों के जनाजे में भीड़ को भड़काने के लिए हवा में फायरिंग किया करता था,जिससे कई युवा आतंकी बनने के लिए प्रेरित हुए।स्पष्ट है ,सुरक्षाबल स्थानीय स्तर पर आतंकवाद को पनपने से रोकने के लिए तमाम प्रयास कर रहे हैं,जो स्वागत योग्य है।अब यही समय है,जब भारत सरकार को भी जनता में व्याप्त थोड़े भी आक्रोश को विश्वासबहाली से समाप्त कर देना चाहिए।
लेखक – राहुल लाल स्वतंत्र टिप्पणीकार
– ये लेखक के निजी विचार है
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