Navratri : हिन्दू धर्म इकलोता एसा धर्म हैं जँहा करोड़ो देवी-देवताओ कि पूजा की जाती हैं। हर हिन्दू को अपनी इच्छा अनुसार अपने आराध्य को चुनने की इजाज़त हैं। कौई शिव का भक्त हैं तो कोई कृष्ण का, कौई माँ लक्ष्मी की तो कौई माँ दुर्गा की उपासना करता है। लेकीन आस्था सभी देवी-देवताओ में हैं ।
नवरात्रि हिन्दूओ का लोकप्रिय पर्व हैं, हिन्दू धर्म में नवरात्र का बेहद खास महत्व हैं। Navratri के नौ दिन माँ दुर्गा को समर्पित हैं, इन नौ दिनो में भक्ति-भाव के साथ माँ के नौ रुपो की पूजा-उपासना की जाती हैं। श्रद्धालु इन नौ दिन व्रत-उपवास करते हैं, और माँ आदिशक्ति के रुपो की आराधना करते हैंं।
हिंदू धर्म में नवरात्रि को माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय माना गया है। कई श्रद्धालुओं को यह जानकर हैरानी होगी कि एक वर्ष में चार बार नवरात्रि आती है। ये चार नवरात्रि चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीने की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक रहती हैं। परंतु चैत्र और आश्विन के नवरात्रि को ही प्रसिद्धि प्राप्त है, व ज्यादातरों को सिर्फ इन्हीं दो नवरात्रि के बारे में जानकारी है। इन नवरात्रि का आरंभ चैत्र और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से होता है व इन्हें वासन्ती और शारदीय नवरात्रि भी कहते हैं। इन दोनों में से भी अश्विनी के Navratri को ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है.
शारदीय नवरात्र
शारदीय Navratri आश्विन मास की शुक्ल पक्ष प्रतिपदा में शुरू होता है। इन चारों नवरात्रि में से अश्विन नवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। व पूरे देश में से बड़े धूमधाम से मनाया जाता है
वासंती नवरात्र
इसका प्रारंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा में होता है। इस Navratri को कुल देवी-देवताओं की पूजा की दृष्टि से विशेष माना जाता है।
पूरे देश में Navratri को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। देश के हर हिस्से में Navratri को अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है, खासतौर पर बंगाल व गुजरात के नवरात्र लोगों के बीच काफी चर्चित रहते है। यहां अलग ही रौनक रहती है व बहुत ही उत्साह देखने को मिलता है
Navratri के नौ दिन माँ के नौ रूपों की पूजा
प्रथम प्रतिपदा : माँ शैलपुत्री
प्रतिपदा : माँ ब्रह्मचारिणी
तृतीया : माँ चंद्रघंटा
चतुर्थी : माँ कुष्मांडा
पंचमी : माँ स्कंदमाता
सस्ती : माँ कात्यायनी
सप्तमी : माँ कालरात्रि
अष्टमी : माँ महागौरी
नवमी : माँ सिद्धिदात्री
Navratri पूजा विधि
Navratri की शुरुआत कलश स्थापना से होती है। आप सबसे पहले लाल रंग का कपड़ा बिछाकर माता की प्रतिमा स्थापित कर ले, उनका दरबार सजा लें। इसके बाद किसी बर्तन में या मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज डालले। अब कलस पर मोली बांधकर इसे उस पात्र के बीच में रख ले, इसके बाद कलर्स को तिलक लगाएं उसमें जल या गंगाजल भर ले व स्वास्तिक बना ले। इसके बाद कलश में आम के पत्ते या अशोक के पत्ते डा लें, इन्हें कुछ इस तरह डालें कि यह पत्ते थोड़े बाहर की तरफ दिखाई दे व बाहर की तरफ झुके हुए हो। इसके बाद कलश को ढक्कन लगा ले व उसमें थोड़े से अक्षत यानि चावल डाल लें। अब नारियल को लाल कपड़े या माता की चुनरी से लपेट लें उसमें रक्षासूत्र बांध कर कलश के ऊपर रख ले। इस बात का ध्यान रखें कि नारियल का मुंह आपकी तरफ हो।
आदि शक्ति मां दुर्गा के मंत्र
• ओम जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वंधा नमोस्तु ते।।
• सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ए त्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
Author : Himanshi negi
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