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    Home » महाकुंभ से जाने से पहले नागा साधु क्यों ढीली कर देते हैं धर्म ध्वज की डोर? अंतिम दिन खाते हैं ये चीज

    महाकुंभ से जाने से पहले नागा साधु क्यों ढीली कर देते हैं धर्म ध्वज की डोर? अंतिम दिन खाते हैं ये चीज

    February 7, 2025 उत्तर प्रदेश 2 Mins Read
    why naga sadhu loosening religious flag
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    संगम नगरी प्रयागराज में अमृत स्नान खत्म होने के बाद से धीरे-धीरे सभी अखाड़ों के नागा साधु भी महाकुंभ से जाने लगे हैं. अभी सिर्फ 7 अखाड़ों के नागा साधु बचे हैं, जो 12 फरवरी को यहां से काशी चले जाएंगे. लेकिन नागा साधु महाकुंभ से जाने से पहले दो काम जरूर करते हैं. एक तो जाते समय कढ़ी-पकौड़ी का भोज. और दूसरा, (why naga sadhu loosening religious flag) जाते समय अपने शिविर में लगे धर्म ध्वज की डोर को ढीला कर देते हैं.

    इसे भी पढ़ें – बरेली में मांझा बनाने वाली फैक्ट्री में ब्लास्ट, मालिक समेत 3 की मौत, एक घायल

    माना जाता है कि ये इनकी परंपरा है. नागा साधु परंपरा के मुताबिक महाकुंभ से जाते वक्त कढ़ी-पकौड़ी का भोज करना होता है. फिर अपने शिविर में लगे धर्म ध्वज की डोर को भी ढीला करना होता है. जूना अखाड़े के संत ने बताया कि यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

     why naga sadhu loosening religious flag – महाकुंभ का आज यानि शुक्रवार को 27वां दिन है, अभी इसका आयोजन 19 दिन तक और होना है. 26 फरवरी को महाकुंभ का अंतिम दिन है. नागा साधुओं के तीनों अमृत स्नान भी पूरे हो चुके हैं. जिसके बाद नागा साधु वापसी करने लगे है. गुरुवार को कुछ अखाड़ों के नागा साधुओं ने यहां से प्रस्थान कर लिया है. जबकि, कुछ अखाड़े के नागा 12 फरवरी से प्रस्थान करेंगे. वहीं, कुछ अखाड़ों के साधु बसंत पंचमी के स्नान के बाद ही चले गए थे. 7 अखाड़ों के नागा साधु अब सीधे काशी विश्वनाथ जाएंगे.

    काशी विश्वनाथ जाएंगे नागा साधु

    बताया जा रहा है कि महाशिवरात्रि के चलते 7 अखाड़ों के नागा काशी विश्वनाथ जाएंगे. यहां पर वे 26 तारीख यानी महाशिवरात्रि तक अपना डेरा जमाएंगे. इसके बाद वे अपने-अपने अखाड़ों में वापस लौटेंगे. महाशिवरात्रि के मौके पर नागा बनारस में शोभायात्रा निकालेंगे, मसाने की होली खेलेंगे और गंगा स्नान करेंगे. यानि तीन कार्य पूरा करने के बाद नागा वापसी कर लेंगे.

    तीनों शाही स्नान खत्म होते ही आगे बढ़े

    साधु-संतों के लिए अमृत स्नान काफी अहम होता है. ऐसी मान्यता है कि अमृत स्नान करने से एक हजार अश्वमेघ यज्ञ के बाराबर का पुण्य मिलता है. महाकुंभ में अमृत स्नान के बाद साधु-संत ध्यान में लीन हो जाते हैं. आखिरी अमृत स्नान करने के बाद सभी नागा अपने आखाड़ों की ओर बढ़ने लगते हैं.

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