Uttar Pradesh Politics: विधान परिषद की 12 सीटों को लेकर हो रहे चुनाव में समाजवादी पार्टी ने दो उम्मीदवार उतारकर पेच फंसा दिया है। दल नेता अहमद हसन को फिर से मैदान में उतारने के साथ वरिष्ठ नेता राजेंद्र चौधरी को प्रत्याशी घोषित किया गया है। अखिलेश यादव के इस दांव ने बहुजन समाज पार्टी की उलझन बढ़ा दी है। बीते राज्यसभा चुनाव में बड़ी बगावत की चोट झेल चुकीं बसपा प्रमुख मायावती को फैसला करना होगा कि सपा को वाक ओवर देंगी या उसका खेल बिगाड़ेंगी। कमोबेश यही स्थिति कांग्रेस नेतृत्व के सामने भी होगी, क्योंकि विधायक संख्या कम होने के कारण सपा अपने बूते दोनों उम्मीदवारों को नहीं जिता सकेगी। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी में उम्मीदवारों की सूची फाइनल नहीं होने से असमंजस की स्थिति बरकरार है। बसपा के बागियों व अन्य दलों के भरोसे समाजवादी गत राज्यसभा चुनाव में रणनीतिक मात खाने के बाद सबक सीखे अखिलेश यादव इस बार पूरी तैयारी से हैं।
इसे भी पढ़े:Allahabad High Court: विवाहित पुत्री भी अनुकम्पा नियुक्ति की हकदार
बुधवार को सपा मुख्यालय में सभी विधायकों को बुला कर उन्होंने एमएलसी चुनावी रणनीति तय की। सपा विधायकों की संख्या पर्याप्त नहीं होने के बाद भी दूसरा उम्मीदवार मैदान में उतारने का फैसला लिया। आंतरिक असंतोष न पनप पाए, इसलिए पार्टी के वरिष्ठतम नेताओं अहमद हसन व राजेंद्र चौधरी को प्रत्याशी तय किया गया। सूत्रों का कहना है कि सपा को दूसरा उम्मीदवार जिताने के लिए अन्य पार्टियों की मदद लेगी ही पड़ेगी। ऐसे में बसपा के बागियों के अलावा कांग्रेस व सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की भी जरूरत होगी। में बता दें कि गत राज्यसभा चुनाव बसपा के छह विधायक सपा के पाले में नजर आए थे। सपा को दूसरा प्रत्याशी जिताने के लिए 17-18 विधायकों के वोट चाहिए। ऐसे से कांग्रेस और सुभासपा के अलावा निर्दल विधायकों की भी जरूरत होगी।
Uttar Pradesh Politics: सपा को सबक सिखाएंगी मायावती! बसपा में बगावत कराए जाने को लेकर सपा को सबक सिखाने की घोषणा कर चुकीं मायावती के अगले कदम पर सबकी निगाह लगी है। सपा के दूसरे उम्मीदवार की राह कंटीली करने के लिए बसपा की रणनीति इसी पर टिकी होगी। अपना प्रत्याशी जिताने के लिए बसपा के पास संख्या बल नहीं है। कांग्रेस की मदद मिलने पर भी उसका काम नहीं चलेगा। सूत्रों का कहना है कि बसपा अपना उम्मीदवार न उतार कर किसी निर्दल को समर्थन देने का फैसला ले सकती है, ताकि सपा अपना दूसरा उम्मीदवार निर्विरोध न जिता सके।