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    Home » Uttar Pradesh Election 2022: Akhilesh yadav को बड़े के ऊपर नहीं भरोसा, छोटे के आयेंगे साथ !

    Uttar Pradesh Election 2022: Akhilesh yadav को बड़े के ऊपर नहीं भरोसा, छोटे के आयेंगे साथ !

    December 15, 2020 बड़ी खबर 5 Mins Read
    Uttar Pradesh Election 2022: Akhilesh yadav को बड़े के ऊपर नहीं भरोसा, छोटे के आयेंगे साथ !
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    Uttar Pradesh Election 2022 : Uttar Pradesh में होने 2022 विधानसभा चुनाव में लगता है कि ईस बार भाजपा से सीख लेते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी अब उत्तर प्रदेश में छोटे दलों के साथ ही गठबंधन करने में भलाई समझी है। दरअसल, जब से उम्र की वजह से मुलायम सिंह यादव की पार्टी पर पकड़ ढीली पड़ी और सपा की कमान पूरी तरह से अखिलेश के हाथों में आ गई, उन्होंने ही पिछला दोनों चुनाव बड़ी पार्टियों के साथ मिलकर लड़ा और पार्टी को भाजपा की लहर में बहुत ही नुकसान झेलना पड़ा था, यही वजह है कि समाजवादी पार्टी ने अब अपनी रणनीति बदल ली है और छोट-छोटे दलों के साथ तालमेल करके ही चुनाव लड़ने की तैयारी में जुट गई है।

    2017 में कांग्रेस के साथ गठबंधन में लगा झटका उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में अभी सवा साल से भी ज्यादा समय है। लेकिन, सपा, बसपा और कांग्रेस सभी उसकी तैयारियों में जुट चुकी हैं। सत्ताधारी बीजेपी तो हमेशा ही चुनावी मोड में रहती है। मुख्य विपक्षी पार्टी सपा इसके लिए अभी से गोटियां सेट करने में लग गई है। लेकिन, इतना तय है कि अबकी बार पार्टी ने बड़ी पार्टियों के साथ तालमेल करने से साफ तोबा कर लिया है।

    Uttar Pradesh Election 2022 : इसकी वजह ये है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने राहुल गांधी के साथ जो सियासी जोड़ी बनाने की कोशिश की थी, उसे उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने बुरी तरह रिजेक्ट कर दिया। 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा में समाजवादी पार्टी को सिर्फ 47 सीटें और 21.82% वोट मिले। वहीं कांग्रेस को मात्र 7 सीटें और 6.25% वोट मिले। मतलब, जोरदार प्रचार और आउट सोर्स की गई इलेक्शन स्ट्रैटजी के बावजूद तत्कालीन सत्ताधारी सपा को कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी से गठबंधन का कोई फायदा नहीं हुआ और वो बीजेपी के हाथों सत्ता से बेदखल हो गई

    बसपा से गठबंधन करने का हुआ नुकसान तब अखिलेश यादव को लगा कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी को शिकस्त देनी है तो मायावती से पिता मुलायम सिंह यादव की ‘दुश्मनी’ खत्म करनी पड़ेगी। दो साल बाद उन्होंने और उनकी पत्नी डिंपल यादव ने मायावती को मुलायम के साथ एक मंच पर लाने की बहुत ही कामयाब कोशिश की। बसपा सुप्रीमो उत्तर प्रदेश की सियासत में कुख्यात लखनऊ गेस्ट हाउस कांड की कड़वी यादों को भुलाकर 24 साल बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने सियासी विरोधी मुलायम के साथ एक मंच पर आने को राजी हुईं।

    Uttar Pradesh Election 2022 : सियासी पंडितों को ऐसा लगा कि माया-मुलायम के इस अभेद्य गठबंधन को मात देना नरेंद्र मोदी और उनकी बीजेपी के लिए अब नामुमकिन है। लेकिन, जब चुनाव नतीजे आए तो उस समय उत्तर प्रदेश की सियासत में एक तरह से हाशिए पर जा चुकीं ‘बहनजी’ की पार्टी को सपा के मुकाबले 5 सीटें ज्यादा मिलीं और वोट भी अधिक मिल गए। बीएसपी को 10 सीटें और 19.43% वोट मिले, जबकि समाजवादी पार्टी को सिर्फ 5 सीटें और 18.11% ही वोट मिले।

    इसलिए बड़े दलों से हुआ मोहभंग बसपा से अखिलेश यादव का इसलिए और ज्यादा मोहभंग हो गया क्योंकि सपा के साथ गठबंधन करके मायावती की पार्टी ही ज्यादा फायदे में भी रही, और उन्होंने ही एकतरफा अखिलेश यादव की पार्टी पर आरोप लगाते हुए गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया। जबकि, नतीजे जाहिर कर रहे थे कि इस गठबंधन का लाभ बीएसपी को ही ज्यादा मिला है। 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी में बीएसपी को एक भी सीट नहीं मिली थी और वह 19.77% जुटा सकी थी। जबकि, सपा को मोदी लहर में भी मुलायम ‘परिवार’ की 5 सीटों पर कामयाबी मिली और बसपा से कहीं ज्यादा यानि 22.35% वोट मिले थे।

    इसे भी पढ़ें: Arvind Kejriwal की “आप” यूपी में किसके लिये बनेगी ‘श्राप’ ! समीकरण क्यों बिगड़ रहे हैं ?

     2017 के विधानसभा चुनाव में भी बीएसपी को सिर्फ 19 सीटें ही मिली थी। वहीं सपा के साथ गठबंधन करने के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के 10 सांसद चुनाव जीते और अखिलेश यादव की पार्टी के सांसदों की संख्या 2014 के बराबर ही रही और वोट शेयर भी घटकर 18.11% रह गया। यही वजह है कि अखिलेश यादव ने बड़ी पार्टियों की बजाय छोटे दलों से ही तालमेल बिठाने में अक्लमंदी समझी है। छोटे दलों के साथ ‘साइकिल’ का सवारी इसी के चलते अखिलेश यादव ने पिछले दिनों महान दल नाम की पार्टी के साथ गठबंधन बनाया है। इस पार्टी का सियासी वजदू आगरा और बदायूं-बरेली इलाके में मौर्य, सैनी, कुशवाहा और शाक्य समाज के बीच माना जाता है। पार्टी जनवादी पार्टी के साथ भी सक्रिय है, जिसके संजय चौहान साइकिल निशान पर चंदौली में चुनाव मैदान में उतरे थे,लेकिन जीत नहीं सके थे। वहीं अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल के साथ तो उसकी पहले ही पट रही है और नवंबर में हुए विधानसभा उपचुनाव में सपा ने उसके लिए बुलंदशहर की सीट भी छोड़ दी थी, भले ही वहां आएलडी की ताकत पांचवें नंबर की ही बन पाई।

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