‘Keral Model’ इस उपलब्धि में सबसे अहम भूमिका रही पिनरायी विजयन सरकार की स्वास्थ्य मंत्री सैलजा की। उन्हें ‘कोरोना स्लेयर’ (कोरोना को मार गिराने वाला) तक कहा जाने लगा। विजयन सरकार हाल ही के चुनाव बाद ऐतिहासिक जीत के साथ सत्ता में लौटी तो उसके पीछे एक कारण यह उपलब्धि भी रही।
इसके बावजूद मुख्यमंत्री विजयन दूसरी बार जब अपनी टीम (मंत्रियों की) बना रहे हैं, तो उसमें सैलजा का नाम नहीं है। इससे खुद वाम मोर्चा (एलडीएफ) के लोग हैरान हैं। वैसे, सैलजा ने कोरोना नियंत्रण में ही नहीं राजनीति में भी झंडे गाड़े थे। विधानसभा चुनाव में उन्होंने मट्टानूर सीट पर रिकॉर्ड 61,035 वोट के अंतर से जीत हासिल की। केरल में यह जीत का नया कीर्तिमान रहा।
इसे केरल और उसके बाहर के लोगों ने कोरोना की दो लहरों से बखूबी मुकाबले की उनकी रणनीति पर मोहर की तरह देखा। इससे पूर्व 2018 में राज्य में घातक निपाह वायरस भी फैला था। उससे जंग के उनके नेतृत्व की भी कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने तारीफ की थी। इसीलिए माना जा रहा था कि इस बार वे मुख्यमंत्री विजयन के नेतृत्व वाली सरकार में नंबर दो की हैसियत पर रह सकती हैं।
आखिर सैलजा क्यों नहीं? सूत्र बताते हैं कि केके सैलजा को नई मंत्रिपरिषद में जगह न देने के पीछे विजयन की एकछत्र राज की मंशा और माकपा की अंदरूनी लड़ाई है। स्कूल शिक्षक से राजनेता बनीं शैलजा ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में खुद को साबित किया है। राजनीतिक जानकार उनको भावी मुख्यमंत्री के रूप में भी देखते हैं। शायद यही विजयन को अपने लिए चुनौती लगी है।
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सैलजा ने ‘कोरोना स्लेयर…. पर उन्हें अब पार्टी सचेतक की जिम्मेदारी दे दी जा रही है। विजयन को वाम गठबंधन ने अपना फिर नेता चुन लिया है। वे 20 मई को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं। बताया जाता है कि नए चेहरों में माकपा की युवा इकाई डीवाईएवाई के अध्यक्ष और विजयन के दामाद मोहम्मद रियास मंत्री बन रहे हैं। इसी तरह माकपा राज्य सचिव ए विजयराघवन की पत्नी आर बिंदु का नाम भी है।
कैबिनेट में तीन महिलाओं को जगह मिल रही है। हालांकि उनके पास पिछला कोई प्रशासनिक या संगठन का अनुभव नहीं है। सैलजा बोलीं- मुझे ही नहीं किसी को भी नहीं लिया : इस घटनाक्रम पर सैलजा ने कहा कि वह माकपा की अनुशासित कार्यकर्ता हैं। जो भी जिम्मेदारी पार्टी देगी, वह उसे निभाएंगी। उन्होंने कैबिनेट में शामिल न किए जाने के संबंध में कहा कि पार्टी नए चेहरे सरकार में लाना चाहती है।
ताकि शासन को नई सोच, नई दिशा मिले। मुझे ही नहीं पिछली सरकार के किसी भी मंत्री को नहीं लिया गया है। पार्टी सांसद ने कहा- नीतिगत फैसला : माकपा के राज्यसभा सदस्य इलामालोम करीम ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा कि सैलजा को शामिल न करना नीतिगत फैसला है। मुख्यमंत्री के अलावा किसी को दूसरा कार्यकाल नहीं मिला है।
उन्होंने कहा, ‘हमारे नेता सत्ता के भूखे नहीं है। जो भी जिम्मेदारी पार्टी देगी, वह पूरी करेंगे। सैलजा के योगदान की पार्टी बहुत तारीफ और कद्र करती है।’ महिला मतदाता ज्यादा महिलाओं को पूरा प्रतिनिधित्व नहीं : केरल में महिला मतदाता पुरुषों से 8.2 लाख ज्यादा हैं। विधानसभा की सभी 140 सीटों में पुरुषों की तुलना में महिला मतदाता ज्यादा हैं।
कोच्चि की संस्था सेंटर फॉर पब्लिक पॉलिसी रिसर्च के डी धनुराज के मुताबिक इनमें से 46% महिलाओं ने इस बार वाम मोर्चे को वोट दिया है। महिला अधिकार कार्यकर्ता एलियम्मा विजयन भी कहती हैं कि इस बार महिलाओं ने सत्ताधारी पार्टी को दोबारा लाने में अहम भूमिका निभाई है।
फिर भी चुनाव में केवल 11 महिलाएं चुनी गई हैं। इनमें 10 वाम मोर्च की और एक विपक्षी रिवॉल्यूशनरी मार्क्सिस्ट पार्टी (आरएमपी) की केके रामा हैं। वाम मोर्चे में भी पुरुषों का दबदबा, पहले ऐसे ही गौरी को रोका था: राजनीतिक प्रेक्षक और शिक्षाविद् डॉ. जे देविका बताती हैं कि माकपा में पुरुषवादी मानसिकता है।
सैलजा जैसी अनुभवी नेता को कैबिनेट में न रखने से पार्टी में पुरुषों के दबदबे का पता चलता है। इससे पहले 1987 में वरिष्ठ महिला नेता आरके गौरी को भी ऐसे ही मुख्यमंत्री बनने से रोक दिया गया था। जबकि वह चुनाव में उन्हीं के चेहरे पर जीता था।
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