एक मुस्लिम युवक और हिंदू लड़की की शादी पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है जो निचली अदालतों के लिए ही नहीं सरकारों के लिए भी सबक है. सर्वोच्च अदालत ने साफतौर पर कहा है कि जब अलग-अलग धर्मों के दो वयस्क सहमति से एक साथ रहने का फैसला लेते हैं तो राज्य सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती. क्या है पूरा मामला और (decision of supreme court) क्यों सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की, आइए जानते हैं.
उत्तराखंड में एक मुस्लिम शख्स ने हिंदू लड़की से शादी की थी. विवाह उनके परिवारों की अनुमति से सम्पन्न हुआ था. मुस्लिम व्यक्ति ने शादी के एक दिन बाद एक हलफनामा भी दाखिल किया था, जिसमें उसने कहा था कि वह अपनी पत्नी को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर नहीं करेगा और वह अपने धर्म का पालन करने के लिए स्वतंत्र है.
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