दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि यदि केंद्र सरकार टारगेटेड पब्लिश डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (टीडीपीएस) पर लगी सीमा को हटाने पर सहमत होती है तो वह रोहिंग्या शरणार्थियों (Rohingya Refugees) और शरण चाहने वालों को मुफ्त राशन देने पर विचार कर सकती है। कोविड लॉकडाउन की वजह से देशभर में शरणार्थियों को मुफ्त राशन देने की मांग को लेकर पिछले महीने दायर जनहित याचिका के जवाब में दिल्ली सरकार ने कहा, ”दिल्ली के पास राज्य का राशन कार्ड नहीं है, राशन वितरण के लिए केवल नेशनल फूड सिक्यॉरिटी (एनएफएस) कार्ड्स का इस्तेमाल किया जाता है जिसके लिए केंद्र सरकार की ओर तय सीमा प्राप्त की जा चुकी है। हालांकि यदि केंद्र सरकार मंजूरी देती है तो यह विभाग इन आवासों/कैंपों को निकटतम उचित मूल्य की दुकान (एफपीएस) से जोड़कर राशन उपलब्ध करा सकता है।

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विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी की सरकार ने कहा कि कोर्ट उन शरणार्थियों (Rohingya Refugees) को राशन कार्ड जारी करने का निर्देश दे सकता है जिन्हें केंद्र की ओर से टीडीपीएस के तहत लाभ के लिए पहचाना और प्रमाणित किया गया है। एडवोकेट चिराग एम श्रॉफ की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है, ”यह तभी संभव है जब भारत सरकार दिल्ली को लेकर लाभार्थियों की सीमा बढ़ाएगी, क्योंकि आखिरी बार यह सीमा 2011 की जनगणना के आधार पर तय की गई थी।

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दिल्ली सरकार ने कहा कि इस समय दिल्ली के लिए केंद्र सरकार ने एनएफएस ऐक्ट 2013 के मुताबिक पीडीएस लाभार्थियों की संख्या 72,77,995 तय की है। राशन कार्डों की संख्या इस सीमा तक पहुंच चुकी है और 2 लाख आवेदन लंबित हैं। चूंकि दिल्ली में राशन कार्ड पहले आओ पहले पाओ की नीति के आधार पर दिया जाता है, इसलिए तब तक कोई नया कार्ड जारी नहीं किया जा सकता है, जब तक कोई दूसरा कार्ड सस्पेंड नहीं होता।

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टीडीपीएस के तहत राशन कार्ड केवल भारत के नागरिकों को जारी किया जा सकता है, जो राज्य में रह रहे हैं। हलफनामा कहता है कि टीडीपीएस 2015 के खंड 4 (2)  कहता है कि मानवीय आधार पर राशन कार्ड उन परिवारों या व्यक्ति को भी राज्य दे सकता है जिन्हें शरणार्थी का दर्जा प्राप्त है। दिल्ली के खाद्य आपूर्ति विभाग द्वारा दायर हलफनामे में आगे कहा गया है कि अप्रैल 2020 में लॉकडाउन के दौरान शुरू हुआ सूखा राशन टीडीपीएस के दायरे से बाहर के लोगों को और समान रूप से जिनके पास एनएफएस अधिनियम के तहत राशन कार्ड नहीं हैं, उन्हें मुफ्त में प्रदान किया गया था।

 

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