संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) ने विपक्षी नेताओं के विरोध के बावजूद वक्फ बिल का फाइनल रिपोर्ट तैयार कर ली है. बजट सत्र में इसे पेश करने की संभावना है. विपक्षी नेताओं ने बिल के विरोध में 44 प्रस्ताव दिए थे, जिसे बहुमत से खारिज कर दिया गया. बहुमत के लिए सरकार को एनडीए के सभी सहयोगी दलों का समर्थन मिला. नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड ने भी वक्फ बिल को लेकर जेपीसी की मीटिंग (Nitish Kumar With BJP On Waqf Bill) में सरकार का खुलकर साथ दिया है.
वो भी तब, जब जेपीसी में वक्फ बिल को भेजते वक्त नीतीश ने इसके विरोध की बात कही थी. दरअसल, जब वक्फ बिल को जब जेपीसी में भेजा गया था, तब जेडीयू के मुस्लिम नेताओं ने सुन्नी वक्फ बोर्ड के नेताओं के साथ नीतीश कुमार से मुलाकात की थी. नीतीश ने इस बैठक में नेताओं को भरोसा दिया था कि आपके साथ कोई अहित नहीं होगा.
वक्फ बिल पर अब भी कौन सा पेच?
जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल के मुताबिक जेपीसी में आने के बाद वक्फ बिल में 14 बदलाव किए गए हैं. इन बदलावों में सरकारी फैसलों को कोर्ट में चुनौती देना प्रमुख है. हालांकि, अब भी इस बिल को लेकर कई ऐसे पेच हैं, जिस पर बवाल मचा हुआ है. विपक्ष ने बिल को दुरुस्त करने के लिए बदलाव के 44 प्रस्ताव दिए थे, लेकिन एक भी नहीं माना गया. मुस्लिम नेता और विपक्षी सांसद जिला कलेक्टर को दिए गए अधिकार को लेकर सवाल उठा रहे हैं. मुस्लिम समुदाय के नेता वक्फ बोर्ड में दूसरे धर्म के 2 सदस्यों को शामिल करने का विरोध कर रहे हैं.
Nitish Kumar With BJP On Waqf Bill – एक विरोध बिना दस्तावेज दान की गई जमीन को लेकर भी है. दरअसल, वक्फ के पास कई जमीन ऐसी है, जो दान में तो दी गई है लेकिन उसका समुचित कागज नहीं है. 1954 में इस जमीन को लेकर एक नियम बनाया गया था. उसमें वक्फ को इसका मालिकाना हक दिया गया था. बिना दस्तावेज की जमीन को उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ के नाम से प्रयोग किया जाता है. अब इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है. ऐसे में बिल के पास होने के बाद बिना दस्तावेज वाली जमीन वक्फ से ली जा सकती है.
नीतीश के विरोध से घिर सकती है सरकार
वक्फ बिल पर अगर नीतीश कुमार विरोध का स्टैंड लेते हैं तो केंद्र सरकार घिर सकती है. दरअसल, नीतीश के विरोध से सरकार नैतिक तौर पर जहां बैकफुट पर चली जाएगी, वहीं एनडीए के भीतर कई और पार्टियां इसको लेकर मुखर हो सकती है.
संख्या को लेकर भी सदन में सरकार घिर सकती है. वर्तमान की केंद्र सरकार के पास लोकसभा में सिर्फ 240 के आंकड़े हैं, जो सामान्य बहुमत से 32 कम है. नीतीश अगर विरोध करते हैं तो सरकार बिल को तुरंत पास कराने की जहमत शायद ही उठाए.
सवाल- नीतीश मुसलमानों के मुद्दे पर चुप क्यों?
वक्फ मुसलमानों का बड़ा मुद्दा है. पिछले एक साल में पर्दे के पीछे नीतीश कुमार ने भले कोई टिप्पणी की हो, लेकिन अभी तक फ्रंटफुट पर आकर नीतीश ने इसको लेकर कुछ नहीं कहा है. नवंबर 2024 में बिहार में आरजेडी समेत कुछ दलों ने विधानसभा के भीतर इसको लेकर नीतीश की घेराबंदी भी की थी, लेकिन नीतीश तब भी चुप रहे.
बिहार में इस साल के आखिर में विधानसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में इस बात की गुंजाइश कम ही है कि नीतीश मुसलमानों के मुद्दे को लेकर बीजेपी का सीधा विरोध करे. विरोध न करने की एक वजह मुसलमानों का नीतीश से मोहभंग होना भी है. कैसे, इसे 3 प्वॉइंट्स में समझिए…
1. 2020 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में मुसलमानों ने नीतीश को समर्थन नहीं दिया. 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार ने 11 मुसलमानों को टिकट दिया था, लेकिन एक भी जीत नहीं पाए. 2024 में जेडीयू ने किशनगंज सीट पर मुस्लिम समुदाय से आने वाले नेता को टिकट दिया था, लेकिन वे भी जीत नहीं पाए.
2. जेडीयू को जहां मुसलमानों का समर्थन नहीं मिल रहा है. वहीं उसके पास जनाधार वाले मुस्लिम नेताओं की कमी हो गई है. एक वक्त जेडीयू में खुर्शीद आलम, अली अनवर अंसारी, गुलाम गौस, मंजर आलम, मोनाजिर हसन और शाहिद अली खान जैसे कद्दावर नेता हुआ करते थे, जिसकी अब कमी है.
3. बीजेपी ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार घोषित कर दिया है. बिहार में 8 महीने बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं. नीतीश चुनावी साल में ऐसा कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं, जिससे उनका नुकसान हो जाए.