दिवाली का त्योहार लोगों के घर और परिवार में खुशियां लेकर आता हैं, लेकिन इस बार का त्योहार लोगों के लिए रोशनी की जगह अंधकार लेकर आया. मध्य प्रदेश में सैकड़ों घरों की खुशियां आंसुओं में बदल गईं. सौ डेढ़ सौ रुपए की कीमत में मिलने वाली देसी गन यानी कि कार्बाइड गन नाम का देसी पटाखा बच्चों के लिए अंधकार का सबब बन गया. तीन चार दिनों में 150 से ज्यादा बच्चे इस खतरनाक खिलौने की चपेट में आकर घायल हुए, जिनमें से 14 मासूम अपनी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए खो बैठे.
भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर और विदिशा जैसे शहरों में यह देसी जुगाड़ करीब 150 रुपये में खुलेआम बिकता रहा और किसी भी जिम्मेदार का इस ओर ध्यान तक नहीं दिया. आईये जानते आखिर क्या है यह कार्बाइड गन यानी कि देसी जुगाड़. कार्बाइड गन असल में रक्षा निर्माणी या फिर कोई फैक्ट्री में बना हथियार नहीं बल्कि एक बेहद खतरनाक देसी प्रयोग है, जिससे पुराने समय में लोग मवेशी और जंगली जानवरों को भगाने के लिए बनाते थे.
मिनटों में बनती कार्बाइड गन
इस हथियार को बनाने में महज कुछ मिनट लगते हैं. इसे बनाने के लिए एक पीवीसी पाइप, कैल्शियम कार्बाइड के टुकड़े, थोड़ा पानी और एक लाइटर ही काफी हैं. यह पाइप आमतौर पर आसानी से हार्डवेयर की दुकानों पर मिल जाता है. बच्चे इसे खेल-खेल में पटाखा गन की तरह इस्तेमाल करते हैं, लेकिन इसमें होने वाली रासायनिक प्रतिक्रिया किसी बम धमाके से कम नहीं होती.
जानलेवा हथियार
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कोई पटाखा नहीं बल्कि एक रासायनिक हथियार है. एसिटिलीन गैस का दबाव और तापमान इतना अधिक होता है कि कोई भी हल्की गलती जानलेवा साबित हो सकती है. वहीं, जानकार बताते हैं कि जब कैल्शियम कार्बाइड पानी या नमी के संपर्क में आता है तो एक तीव्र रासायनिक प्रतिक्रिया होती है, जिससे एसिटिलीन गैस बनती है और वहीं गैस जो वेल्डिंग में इस्तेमाल होती है और बेहद ज्वलनशील होती है.
बच्चे घायल
इस गैस को जब पाइप के भीतर फंसाकर लाइटर से जलाया जाता है, तो तेज धमाके के साथ विस्फोट होता है. पाइप के भीतर से गैस और गर्म कार्बाइड के कण तेज गति से बाहर निकलते हैं जिससे सामने खड़े व्यक्ति का चेहरा और आंखें बुरी तरह झुलस सकती हैं. जानकारी के मुताबिक, मध्यप्रदेश के भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और विदिशा सहित कई जिलों में कई बच्चे कार्बाइड गन से घायल हो गए हैं, जिसमें ज्यादातर की उम्र 5 से 15 साल के बीच है.
14 बच्चों ने गंवाई आंखों की रोशनी
प्रदेशभर में 130 से ज्यादा बच्चे खतरनाक खिलौने की चपेट में आए, जिनमें से 14 ने अपनी आंखों की रोशनी खो दी. कार्बाइड गन का धमाका आंख की बाहरी परत कॉर्निया को चीरता हुआ अंदरूनी हिस्सों तक पहुंच जाता है, जिससे रेटिना डैमेज, अंदरूनी ब्लीडिंग और कई मामलों में स्थायी अंधापन हो जाता है. कई बच्चों के चेहरे पर प्लास्टिक के छर्रे घुस जाने के कारण गंभीर जख्म बने हैं, जिन्हें निकालना भी मुश्किल है.
दिवाली का असली अर्थ उजाला फैलाना है न कि अपनी आंखों की रोशनी गंवाना. यह कार्बाइड गन भले ही सस्ती और मनोरंजक लगे लेकिन इसके पीछे छिपा खतरा किसी त्रासदी से कम नहीं है. थोड़ी-सी लापरवाही जिंदगी भर का पछतावा बन सकती है. स्वास्थ्य विभाग ने अभिभावकों से अपील की है कि वे बच्चों को ऐसे जुगाड़ से बने खिलौनों से दूर रखें और इसकी बिक्री करने वालों की जानकारी तुरंत पुलिस को दें.


