नैनीताल : उत्तराखंड में सरकारी सेवा में महिलाओं (Women’s Reservation) को मिलने वाला क्षैतिज आरक्षण का जिन्न एक बार फिर निकलकर बाहर आ गया है। क्षैतिज आरक्षण को एक याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई है। दालत ने प्रदेश सरकार को छह सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। साथ ही कहा कि पीसीएस परीक्षा का परिणाम याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेगा। इस मामले उत्तराखंड पीसीएस परीक्षा में शामिल होने वाली उप्र निवासी आलिया की ओर से चुनौती दी गयी है। साथ ही मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैठाणी की युगलपीठ में हुई।

इसे भी पढ़ें – होटलों का ध्वस्तीकरण जारी, पुनर्वास के लिए घर बनाने का काम भी जोरों पर

याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि प्रदेश सरकार ने 10 जनवरी, 2023 को एक अध्यादेश जारी कर उत्तराखंड मूल की महिलाओं को सरकारी नौकरी में 30 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण देने की बात कही है। याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि अध्यादेश पारित होने के बाद वह अधिक अंक लाने के बावजूद पीसीएस मुख्य परीक्षा से बाहर हो गई है। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता डा. कार्तिकेय हरि गुप्ता की ओर से दलील दी गई कि राज्य सरकार की ओर से जो अध्यादेश जारी किया गया है वह अनुचित है। सरकार के पास ऐसा अध्यादेश पारित करने की कोई विधायी शक्ति या अधिकार नहीं है।

इसे भी पढ़ें – हल्द्वानी शहर जल्द ही स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित होगा : धामी

Women’s Reservation – डॉ गुप्ता ने अदालत में यह भी तर्क दिया कि सरकार की ओर से यह अधिनियम केवल उच्च न्यायालय के 24 अगस्त, 2022 के आदेश को निष्प्रभावी करने के लिये लाया गया है जिसमें उच्च न्यायालय ने प्रदेश सरकार के 24 जुलाई, 2006 के महिला आरक्षण संबंधी शासनादेश पर रोक लगा दी थी।उन्होंने यह भी कहा कि सरकार का यह कदम भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 का उल्लंघन है। भारत सरकार की अनुमति के बिना यह कदम असंभव है और प्रदेश विधानमंडल दल इस मामले में सक्षम नहीं है। इस मामले में आगामी चारजुलाई को सुनवाई होगी। अदालत ने हालांकि अध्यादेश को न तो खारिज किया और न ही कोई रोक लगायी, लेकिन प्रदेश सरकार को छह सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिये हैं।

Exit mobile version