पिछले 13 महीनों से लगाए जा रहे कयासों का दौर आखिरकार मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद थम गया है। बीते रात दो घंटे की पूछताछ के बाद ईडी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को आबकारी नीति घोटाले में गिरफ्तार कर लिया।

जिसके बाद उन्हें रातभर ईडी मुख्यालय के लॉकअप में रहना पड़ा। हालांकि, केजरीवाल के गिरफ्तारी के बाद से ही आम आदमी पार्टी और भाजपा में जुबानी जंग भी तेज हो गई है। एक ओर जहां आम आदमी पार्टी इसे बदले की राजनीति बता रही है तो वहीं भाजपा इसे कानून की कार्रवाई करार दे रही है।

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जेल से चल सकते हैं सरकार

लेकिन इन सब के बीच एक बड़ा सवाल उठने लगा है कि अगर अरविंद केजरीवाल को कोर्ट से राहत नहीं मिलती है तो दिल्ली के सत्ता की चाबी किसके हाथों में होगी? मतलब आसान भाषा में कहें तो क्या दिल्ली में कोई नया मुख्यमंत्री बनेगा या अरविंद केजरीवाल अपने पद पर बने रहेंगे? इसको लेकर दिल्ली सरकार में मंत्री आतिशी ने साफ कर दिया है कि अरविंद केजरीवाल ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे चाहे जेल से ही सरकार क्यों ना चलानी पड़े।

हालांकि, इन सबसे इतर व्यवहारिक रूप से क्या ये संभव है और कानून इसके बारे में क्या कहता है? जहां तक कानून की बात है तो ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि बतौर आरोपी जेल में रहते कोई मुख्यमंत्री नहीं रह सकता है। जबतक आरोप सिद्ध नहीं हो जाता, अरविंद केजरीवाल चाहे तो जेल में रहकर भी वो मुख्यमंत्री पद पर बने रह सकते हैं। यानी जबतक अरविंद केजरीवाल चाहे वो मुख्यमंत्री पद पर बने रह सकते हैं।

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अविश्वास प्रस्ताव से ही जा सकती है कुर्सी 

उन्हें हटाने का एक ही रास्ता है, और वो है अविश्वास प्रस्ताव। लेकिन दिल्ली विधानसभा की मौजूदा स्थिति को देखते हुए अविश्वास प्रस्ताव का कोई मतलब नहीं बनता। हालांकि, सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या जेल में रहकर सरकार चलाना इतना आसान होगा? तो इसका जवाब लगभग ना है।

क्योंकि मुख्यमंत्री को सिर्फ फ़ाइलों पर दस्तखत नहीं करना होता है। एक मुख्यमंत्री को रोजाना अलग-अलग विभागों के अधिकारियों, मंत्रियों और साथ ही जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक करके नीतिगत फैसले लेने होते हैं। जेल में रहते हुए रोजाना बैठकें करना नामुमकिन सा है। क्योंकि जेल में हर काम सिस्टमैटिक तरीके से होता है। जेल मैनुअल के मुताबिक, जेल में बंद हर कैदी को हफ्ते में दो बार अपने रिश्तेदार या दोस्तों से मिलने की इजाजत होती है।

हर मुलाकात का समय भी आधे घंटे का होता है। इतना ही नहीं, प्रावधान यह भी है कि कोई भी नेता जेल में रहकर चुनाव लड़ सकता है, जरूरत पड़ी तो सदन की कार्यवाही में हिस्सा भी ले सकता है। लेकिन जेल के अंदर किसी भी तरह की बैठक नहीं कर सकता है।

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कोर्ट की अनुमति पर है सब निर्भर 

हालांकि, एक रास्ता है, जिससे अरविंद केजरीवाल सीएम पद पर रह कर जेल से काम कर सकते हैं और वो है कोर्ट का रास्ता। कैदी जब तक जेल में है, उसकी कई सारी गतिविधियां कोर्ट के आदेश पर निर्भर होती हैं। कैदी अपने वकील के जरिए किसी कानूनी दस्तावेज पर तो दस्तखत कर सकता है। लेकिन फिर बात वही आ जाती है कि मुख्यमंत्री को बड़ी संख्या में बैठकें करनी पड़ती है।

ऐसे में यह मुश्किल लग रहा है कि कोर्ट भी इसकी अनुमति दे। यही कारण है कि लालू प्रसाद यादव और हेमंत सोरेन ने गिरफ्तारी से पहले सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। अब देखना यह होगा कि क्या अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री बने रहेंगे या फिर किसी को सीएम बनाया जाएगा और अगर किसी के हाथों में सत्ता की चाबी दी जाती है तो वो शख्स कौन होगा?

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