ईरान-इजराइल वॉर के बीच में गौतन अडानी की चर्चा होने लगी है. जंग के बीच में ईरान ने इजराइल पर कई मिसाइलें दागीं. ऐसी खबरें आईं कि ईरान ने अडानी ग्रुप के हाइफा फोर्ट को भी नुकसान पहुंचाया है. जिसके बाद से पोर्ट और अडानी की चर्चाएं शुरू हो गईं. हालांकि, ग्रुप ने पोर्ट को नुकसान से इनकार किया गया है. अडानी ने इस पोर्ट पर करीब 1.2 बिलियन डॉलर का निवेश किया है. लेकिन क्या आपको पता है कि इसकी रणनीतिक अहमियत केवल बिजनेस (between iran israel war) तक सीमित नहीं है. यह भारत के महत्वाकांक्षी भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (IMEC) और इजराइल की आर्थिक-रक्षा प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा है. आइए आपको डिटेल में बताते हैं कि हाइफा पोर्ट के मायने असल में क्या हैं.
हाइफा पोर्ट का इतिहास
हाइफा पोर्ट का इतिहास 20वीं सदी की शुरुआत से जुड़ा है, जब 1920 में ब्रिटिश शासन के दौरान इसका निर्माण शुरू हुआ और 1933 में इसे औपचारिक तौर से खोला गया. ब्रिटिश मैंडेट और इजराइल के प्रारंभिक वर्षों में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. आज यह पोर्ट इजराइल के आर्थिक और सैन्य तंत्र का केंद्र है. पास में स्थित (between iran israel war) बजान रिफाइनरी, औद्योगिक निर्यात और नौसैनिक गतिविधियों के लिए इसकी दोहरी भूमिका इसे और महत्वपूर्ण बनाती है.
IMEC गलियारे में हाइफा की भूमिका
हाइफा पोर्ट भारत के लिए IMEC का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह गलियारा भारत, इजराइल, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब, यूरोपीय संघ और अमेरिका के सहयोग से बनाया जा रहा है, जिसका उद्देश्य भारतीय बंदरगाहों को अरब प्रायद्वीप और इजराइल के रास्ते यूरोप से जोड़ना है. यह लाल सागर-सुएज नहर मार्ग का एक ऑप्शन हो सकता है. इजराइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने इसे गलियारे की महत्वपूर्ण कड़ी बताया है. भारत के लिए यह निवेश न केवल व्यापार को सुगम बनाएगा, बल्कि क्षेत्रीय भागीदारों के साथ रणनीतिक स्थिति को भी मजबूत करेगा.