यह कहानी उज्जैन के विक्रांत भैरव श्मशान की है… वहां रात का घुप्प अंधेरा था… श्मशान में साधक मंत्रों में लीन थे. उल्लू और कछुए की बलि, कोड़ी और रत्ती साधना जैसी विधियां हो रही थीं. यह महाश्मशान देश के पांच प्रमुख श्मशानों में गिना जाता है.
उज्जैन के इस श्मशान में तंत्र साधना का विशेष महत्व है, ठीक वैसे ही जैसे कामाख्या, तारापीठ, रजरप्पा और त्र्यंबकेश्वर में. साधकों का कहना है कि अमावस्या की रातें, विशेषकर कार्तिक अमावस्या यानी दीपावली की रात तंत्र साधना के लिए खास मानी जाती हैं. यही वजह है कि इस रात उज्जैन के श्मशान में विशेष तंत्र अनुष्ठान होते हैं.
धनतेरस की रात से यहां अनुष्ठान शुरू हो गए थे. साधक हर रात श्मशान में पहुंचते हैं, मंत्रों का जाप करते हैं और यंत्रों के माध्यम से शक्ति, वैभव, सिद्धि और लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए पूजा करते हैं. इस साल विशेष प्रयोजन भी जुड़ा है. ]
आचार्य जयवर्धन भारद्वाज बताते हैं कि धनतेरस की रात से सिद्धि और साधना की सफलता के लिए अनुष्ठान चालू किया. इसमें कुछ खास कारण हैं. इस स्थान का नाम भैरवगढ़ है और यह स्वयं भैरव जी द्वारा साधना का स्थान रहा है. यहां किए गए तप और अनुष्ठान शत प्रतिशत सफलता सुनिश्चित करते हैं. ऐसे पवित्र स्थान पर साधना करने से सिद्धि, लक्ष्मी और विजय की प्राप्ति होती है.
दीपों की रोशनी में जगमगाता शहर एक ओर उत्सव में लीन था, वहीं कुछ साधक अंधकार में सिद्धि के लिए अनुष्ठान में लगे थे. उनके लिए यह रात केवल पूजा नहीं, बल्कि शक्ति, सिद्धि और लक्ष्मी के आह्वान की रात थी. साधकों का मानना है कि इस रात किए गए अनुष्ठान शत-प्रतिशत फलदायी होते हैं, क्योंकि भैरवगढ़ जैसी पवित्र जगह पर तप और साधना का प्रभाव अत्यंत मजबूत होता है.
उज्जैन के इस महाश्मशान में विभिन्न अनुष्ठानों का दृश्य भी अनोखा है. पूजन करते हुए तंत्र साधक मंत्रों का उच्चारण करते हैं, यंत्रों को सजाते हैं और ध्यान के माध्यम से साधना में लीन हो जाते हैं. कुछ साधक श्मशान के कोने में बैठकर गौरी-गणेश साधना करते हैं, तो कुछ कुबेर और लक्ष्मी की साधना में मग्न होते हैं. उल्लू की बलि और कछुआ साधना जैसे क्रियाएं भी होती हैं, जिनका उद्देश्य देवी-देवताओं को प्रसन्न करना और सिद्धि प्राप्त करना होता है.