वोटिंग खत्म होने के बाद 48 घंटे के भीतर वोटिंग का डाटा सार्वजनिक किए जाने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने किसी भी तरह से आदेश जारी करने से मना कर दिया है। मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की वेकेशन बेंच ने कहा कि पांच चरण के चुनाव हो चुके है, अब केवल दो चरण के चुनाव शेष है। ऐसे में डेटा अपलोडिंग के ले मैनपावर जुटाना चुनाव आयोग के लिए मुश्किल है।
48 घंटे में बूथ बाइज डेटा देने की थी मांग
NGO एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने याचिका में चुनाव आयोग की वेबसाइट पर फॉर्म 17सी डेटा अपलोड करने और बूथ वाइज वोटिंग डेटा अपलोड करने की मांग की थी। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से चुनाव आयोग को मतदान के 48 घंटे के भीतर चुनाव आय़ोग को वोटिंग प्रतिशत का डेटा बूथ वाइज वेबसाइट पर अपलोड करने के निर्देश देने की मांग की गई थी।
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चुनाव आयोग ने कही थी ये बात
22 मई की सुनवाई में चुनाव आयोग ने याचिका को विरोध करते हुए कहा था कि फॉर्म 17सी के आधार पर वोटिंग डेटा का खुलासा करने से मतदाताओं के बीच भ्रम पैदा होगा, क्योंकि इसमें बैलेट पेपर की गिनती भी शामिल होगी। ऐसा कोई कानून नहीं है, जिसके आधार पर सभी मतदान केंद्रों का फाइनल वोटिंग डेटा जारी करने के लिए कहा जा सके। फॉर्म 17सी केवल पोलिंग एजेंट को दे सकते हैं। इसे किसी अन्य व्यक्ति या संस्था को देने की अनुमति नहीं है।’ फॉर्म 17सी वह प्रमाण पत्र है, जिसे पीठासीन अधिकारी सभी प्रत्याशियों को प्रमाणित करके देता है।
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इससे फैल सकती है अव्यवस्था – चुनाव आयोग
आयोग ने कहा था कि कई बार जीत-हार का अंतर नजदीकी होता है। आम वोटर फॉर्म 17सी के अनुसार बूथ पर पड़े कुल वोटों और बैलेट पेपर को आसानी से नहीं समझ सकते। ऐसे में इसका इस्तेमाल गलत तरीके से चुनावी प्रक्रिया पर कलंक लगाने के लिए किया जा सकता है, जिससे मौजूदा चुनाव में अव्यवस्था फैल सकती है।’
याचिका में कहा गया था कि चुनाव आयोग ने 19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान के 11 दिन बाद और 26 अप्रैल को दूसरे चरण के मतदान के चार दिन बाद 30 अप्रैल को फाइनल वोटिंग पर्सेंट जारी किया था। इसमें वोटिंग के दिन जारी शुरुआती आंकड़े के मुकाबले वोटिंग पर्सेंट लगभग 5-6 प्रतिशत ज्यादा था।