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    Home » यहां सज-धज कर बारात लेकर निकलता है दूल्हा, बिन दुल्हन लौटता है वापस… 300 साल से चली आ रही अनोखी परंपरा

    यहां सज-धज कर बारात लेकर निकलता है दूल्हा, बिन दुल्हन लौटता है वापस… 300 साल से चली आ रही अनोखी परंपरा

    March 16, 2025 राजस्थान 3 Mins Read
    unique tradition that has been going on for 300 years
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    पूरे देश में 14 मार्च, शुक्रवार को धूमधाम से होली मनाई गई. लोग कई तरह से होली मनाते हैं. कोई फूलों की होली खेलता है तो कोई रंग और गुलाल की होली खेलता है. होली के मौके पर (unique tradition that has been going on for 300 years) अलग-अलग जगह अलग-अलग परंपराएं निभाई जाती है. ऐसे ही राजस्थान के बीकानेर में एक परंपरा होली के मौके पर निभाई जाती है, जिसे यहां के लोग पिछले 300 सालों से निभाते आ रहे हैं. बीकानेर में धुलंडी होली के दिन एक ऐसी बारात निकाली जाती है, जिसमें दूल्हा बिना दुल्हन के ही वापस लौटता है.

    unique tradition that has been going on for 300 years – बीकानेर में हर्ष जाती का कोई भी एक युवक इस परंपरा के मुताबिक दूल्हा बनता है, जिसे हर्ष विष्णु के रूप में सजाया जाता है और बारात निकाली जाती है. हालांकि वापसी पर दुल्हन साथ नहीं आती, लेकिन लोगों का मानना है कि इस परंपरा को करने के बाद जो भी युवक दूल्हा बनता है. उसकी शादी एक साल के अंदर ही हो जाती है. इस साल ऋषि नाम के लड़के को विष्णु रूप में दूल्हा बनाया गया, जिसकी बारात महतो चौक से रवाना हुई.

    मांगलिक गीत के साथ निकलती है बारात

    जिस तरह एक बारात में बैंड-बाजे बजते हैं. ठीक उसी तरह इस बारात को भी बैंड-बाजे की धमक के साथ निकाला जाता है. इसके साथ ही जो बारात में जाते हैं. वह मांगलिक गीत भी गाते हैं. ये बारात निकलती है, लेकिन शादी नहीं होती. दूल्हा का स्वागत किया जाता है. ऋषि की बारात शहर के 13 मकानों तक पहुंची, जहां महिलाओं ने मांगलिक गीत गाकर रस्म निभाई. इसके बाद दूल्हा वापस लौट आया.

    300 साल पुरानी है परंपरा

    हिस्ट्री लेक्चरर मुकेश हर्ष के मुताबिक ये परंपरा 300 साल पुरानी है, जिसे आज तक निभाया जा रहा है. इसमें बारात जिस जगह से गुजरती है. वहां का माहौल खुशनुमा हो जाता है और शादी जैसा लगता है. धुलंडी के मौके पर निकलने वाली इस अनोखी बारात की खासियत यह है कि दूल्हा हर साल बिना दुल्हन के लौटता है. फिर भी इस बारात में रौनक पूरी होती है.

    बारातियों की होती है खूब खातिरदारी

    मुकेश हर्ष ने आगे बताया कि इस परंपरा में दूल्हा पैदल ही बारात में चलता है, जिसने सिर पर खिड़किया पाग, ललाट पर पेवड़ी और कुमकुम अक्षत तिलक, बनियान और पीताम्बर पहना होता है. साथ ही गले में फूलों की माला भी पहनी होती है. बारात में दूल्हे का पूरा परिवार, हर्ष जाति के लोग और उसके मोहल्ले के सभी लोग शामिल होते हैं. सभी बारातियों की खूब खातिरदारी की जाती है.

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