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    Home » कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों ने गढ़वाल को किया नजरंदाज, झोली रही खाली

    कांग्रेस-भाजपा दोनों ही दलों ने गढ़वाल को किया नजरंदाज, झोली रही खाली

    April 11, 2022 उत्तराखण्ड 3 Mins Read
    Garhwal
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    उत्तराखंड की राजनीति में पहले भाजपा ने गढ़वाल (Garhwal) से बड़े नेताओं की मुख्यधारा से छुट्टी की और अब कांग्रेस ने भी उसी तरफ कदम बढ़ाते हुए प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष की बागडोर कुमाऊं के नेताओं को सौंप दी। राज्य गठन के बाद दोनों दलों में ऐसा पहली बार हुआ, जब गढ़वाल (Garhwal) से फिलहाल दोनों दलों ने ही किनारा किया।गढ़वाल (Garhwal) के  नेताओं की उत्तराखंड की राजनीति में शुरूआत से अच्छी-खासी धमक रही है। पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी, डा. रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा, त्रिवेंद्र रावत और तीरथ रावत इसके उदाहरण भी है, लेकिन इस बार ऐसे पुराने चेहरों के साथ ही नए नेताओं की मुख्यधारा से दूरी हो चुकी है।

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    भाजपा की तरफ से सबसे पहले केंद्र में शिक्षा मंत्री रहे डा. रमेश पोखरियाल निशंक से जुलाई, 21 में  इसकी शुरूआत हुई। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कैबिनेट में हुए फेरबदल में निशंक के स्थान पर नैनीताल-ऊधमसिंहनगर के सांसद अजय भट्ट को केंद्रीय राज्यमंत्री के रूप में जगह दी गई।इसी माह राज्य के मुख्यमंत्री रहे तीरथ रावत की भी कुर्सी हिली और उनके स्थान पर खटीमा से विधायक रहे पुष्कर धामी को नई जिम्मेदारी सौंपी गई। वहीं, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में हरिद्वार विधायक मदन कौशिक की ताजपोशी की गई। इसी साल फरवरी माह में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को 47 सीटें मिली थी। इनमें 29 सीटें गढ़वाल मंडल से मिली थी। तब माना जा रहा था कि उत्तराखंड के बड़े नेताओं की अहम जिम्मेदारी मिल सकती है, लेकिन यह बाजी भी फिसल गई।

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    भाजपा हाईकमान ने धामी पर अपना भरोसा कायम रखते हुए दोबारा मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें कमान सौंपी। गढ़वाल मंडल से अगर हरिद्वार जिले को छोड़ दें तो भाजपा को देहरादून, पौड़ी, रुद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी और उत्तरकाशी से 26 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसके बावजूद संगठन में प्रदेश अध्यक्ष की अहम जिम्मेदारी तक इन जिलों के बड़े नेताओं को नहीं मिल पाई।

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    भाजपा और कांग्रेस हाईकमान इस बार गढ़वाल और कुमाऊं मंडल के बीच क्षेत्रीय समीकरण नहीं साथ पाए हैं। अक्सर दोनों दल अभी तक ठाकुर और ब्राह्मण को सरकार और संगठन में मुख्य पद देकर तालमेल बैठाते रहे। दोनों दल अगर मुख्यमंत्री ठाकुर जाति से बनाते थे तो फिर प्रदेश अध्यक्ष या फिर नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी ब्राह्मण चेहरे को सौंपते रहे।भाजपा में अभी यह समीकरण है, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष हरिद्वार से होने की वजह से पर्वतीय जिलों में खालीपन महसूस किया जा रहा है। वहीं, कांग्रेस ने प्रदेश अध्यक्ष ठाकुर तो नेता प्रतिपक्ष दलित वर्ग से बनाया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि ऐसा समीकरण लंबा खिंचने की उम्मीद कम हैं, अन्यथा भविष्य में दोनों दलों को इसकी भरपाई करना मुश्किल माना जा रहा है।

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