अजय देवगन की फिल्म Raid 2 देखने के बाद कुछ बातें कहना जरूरी है. हाल के समय में यह उन फिल्मों में से है जिसमें हथौड़े, गंड़ासे, कुदाल या फावड़ा वाले खून-खराबा दिखाने (land for job scam in Raid 2) से परहेज किया गया है. लिहाजा दर्शकों को इस मोर्चे पर थोड़ी राहत मिलती है. अजय देवगन के अभिनय में हड़बोलापन नहीं है. शुरू से अंत तक गंभीरता बनी रहती है. रितेश देशमुख भी खूंखार खलनायक नहीं हैं. यानी पर्दे पर खून नहीं बहते ना ही गरदनें या बांहें काटी जाती हैं. हां, इसके बदले एक सफेदपोश का अकूत काला धन जरूर दिखता है. जिसके नोटों के बंडल बोरियों या कार्टून के डब्बे में नहीं बल्कि गोदामों और होटल के पैंट्री और लॉन्ड्री में भरकर रखे गए हैं.

फाउंडेशन के नाम पर भ्रष्टाचार, काला धन की कहानी

रेड 2 की कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है फाउंडेशन के नाम पर भ्रष्टाचार, काला धन, जॉब के बदले जमीन घोटाला, नौकरी के बदले युवतियों का शारीरिक शोषण और उसे रसूखदार सत्ता के लिबास से कवरअप करने का काला खेल धीरे-धीरे उजागर होता जाता है. फिल्म में सफेदपोश का चेहरा बने हैं रितेश देशमुख, जो कि बेसहारों की मदद के लिए फाउंडेशन चलाता है, मातृभक्त है. सबसे पहले माता के चरणों की सेवा फिर कोई दूसरा काम. वह आगे चलकर अपने मुरीद बनाए लोगों की बदौलत राजनीति में कदम रखता है.

रेड 2 में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की छवि

यहां पर रेड 2 में पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह की छवि को बहुत ही चतुरता और गंभीरता के साथ चित्रित किया गया है. वह कोई संवाद नहीं बोलते. किसी से मेल-मुलाकात (land for job scam in Raid 2) भी नहीं करते. न कोई मीटिंग, न सभा, न भाषण या न कोई उद्धाटन समारोह. अमय पटनायक के चक्रव्यू में फंस चुके दादा भाई के सारे ठिकानों का भांडा फूट जाता है तब वह सबसे पहले मुख्यमंत्री से मदद की गुहार लगाता है लेकिन निराश होने पर वह सीधे प्रधानमंत्री को फोन लगाता है.

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