कोरबा: कोरबा में चल रहे भू विस्थापितों के आंदोलन को छत्तीसगढ़ बचाव आंदोलन का समर्थन मिला है. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संस्थापक आलोक शुक्ला सहित अन्य पदाधिकारी बुधवार को कोरबा जिले में मौजूद रहे. टीपी नगर स्थित प्रेस क्लब, तिलक भवन में उन्होंने प्रेस वार्ता में विस्थापन के दर्द सहित कई गंभीर मुद्दों पर चर्चा की.
“विस्थापितों के अधिकारों पर हो रहे हमले”: छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संस्थापक आलोक शुक्ला ने प्रेस वार्ता को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि लगातार कोयला खदानों का विस्तार, हसदेव जंगल की कटाई और बांगो बांध में हुए विस्थापितों का दर्द और विस्थापितों के अधिकारों पर हो रहे हमले भविष्य के लिए एक गंभीर चिंता को दर्शाते हैं. जिस तरह से माइनिंग प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी जा रही है. एसईसीएल में ज्यादातर का खदाने अडानी समूह को चली गई है.
एमडीओ के तरह षड्यंत्र रचते हुए खदानों को आबंटित किया जा रहा है. वह समय दूर नहीं है, जब पूरा का पूरा एसईसीएल अडानी समूह के अधीन होगा. भारत सरकार द्वारा कोल इंडिया को अडानी को सौंपने की तैयारी की जा रही है. जिसके केंद्र में विस्थापन. आजीविका और आने वाले सालों में गहराता संकट है- आलोक शुक्ला, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संस्थापक
मुआवजे की मांग की गई बुलंद: इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में वक्ताओं ने कहा कि 5वीं अनुसूची ग्राम सभा के अधिकारों का पालन नहीं किया जा रहा है. इसके अलावा भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के प्रावधानों को लागू करने और पूर्व में अधिग्रहित भूमि का वर्तमान बाजार दर पर मुआवजा देने की मांग वक्ताओं ने उठा. 1960 के दशक से लेकर आज तक कोरबा जिले में हुए कोयला खदानों के लगातार विस्तार से समस्याओं पैदा हुई है. यह संकट केवल मौजूदा विस्थापन तक सीमित नहीं है, बल्कि आने वाले सालों में कोरबा के लाखों निवासियों के जीवन पर गहरा असर डालेगा.
दशकों से हो रहे खनन ने हमारी बहुमूल्य कृषि भूमि को उजाड़ दिया है. एक तरफ एसईसीएल विस्थापन के नाम पर लोगों की जीवनरेखा को छीन रहा है, वहीं दूसरी तरफ हसदेव जैसे जीवनदायनी जंगल का विनाश के कारण पर्यावरण और जल संकट उत्पन्न हो रहा हैं, जिसके कारण बचा-खुचा कृषि भी प्रभावित हो रहा है. अगर यही हाल रहा, तो आने वाली पीढ़ी के लिए जीवन-यापन और खाद्य सुरक्षा पर सवाल खड़ा हो रहा है- आलोक शुक्ला, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संस्थापक
एसईसीएल पर मनमानी के लगाए आरोप: आलोक शुक्ला ने आगे कहा कि कोयला उद्योग में विस्थापित क्षेत्र के लाखों लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार पाते हैं. आज एसईसीएल केवल मनमानी कर रहा है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आने वाले 20 वर्षों में ये खदानें धीरे-धीरे बंद होने लगेंगी. जब ये खदानें पूरी तरह बंद हो जाएंगी, तो प्रभावित क्षेत्र के लाखों लोगों की आजीविका का क्या होगा? न कृषि बचेगी, न कोयला उद्योग कोरबा के युवाओं का भविष्य किस ओर जाएगा?. उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार से जुड़े अधिनियम का उल्लंघन हो रहा है.
“अब आंदोलन ही एक मात्र रास्ता है”: आलोक शुक्ला ने आगे कहा कि अब यह आंदोलन केवल मुआवजे या नौकरी तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि कोरबा के दीर्घकालिक अस्तित्व की लड़ाई बननी चाहिए. यह मांगें हमें आज ही शक्तिशाली ढंग से उठानी होंगी कि एसईसीएल को केवल मुनाफा नहीं, बल्कि जिम्मेदारी भी लेनी होगी.
यह आंदोलन कोरबा को बचाने, विस्थापितों को न्याय दिलाने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने के लिए निर्णायक साबित होगा. अब चुप बैठने का समय नहीं है, संघर्ष की ज्वाला हर घर तक पहुंचानी होगी- आलोक शुक्ला, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संस्थापक
कोरबा में विस्थापितों का होगा सम्मेलन: आलोक शुक्ला ने आगे कहा कि अब कोरबा में पूरे प्रदेश के विस्थापितों का सम्मेलन आयोजित किया जाएगा. जिसमें देश के किसान आंदोलन के नेता और सामाजिक कार्यकर्ता जुटेंगे. इस सम्मेलन में आंदोलन की रणनीति तैयार किया जाएगा. जिसके जरिए विस्थापितों का उनका अधिकार मिल सके.