नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और कार्यकर्ता मेधा पाटकर की मुश्किलें बढ़ गई है. सुप्रीम कोर्ट ने नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता और कार्यकर्ता मेधा पाटकर की दोषसिद्धि में दखल करने से इनकार कर दिया है. हालांकि, कोर्ट ने मेधा पाटकर पर लगाए गए 1 लाख रुपए के जुर्माने को रद्द कर दिया है. जस्टिस (Medha Patkar did not get relief) एमएम सुंदरेश और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने यह आदेश दिया.
ट्रायल कोर्ट ने मेधा पाटकर को प्रोबेशन लागू करके जेल की सजा से छूट दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने आज प्रोबेशन आदेश को संशोधित किया. जिसमें पाटकर की आवधिक उपस्थिति की जरूरत थी और इसके बजाय उसे बॉन्ड भरने की अनुमति दी. पाटकर की ओर से पेश वरिष्ठ वकील संजय पारीख ने कहा कि अपीलीय अदालत ने दो प्रमुख गवाहों पर विश्वास नहीं किया था.
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Medha Patkar did not get relief – दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने साल 2001 में कार्यकर्ता मेधा पाटकर के खिलाफ मानहानि का मामला दायर किया था. सक्सेना ने 2001 में पाटकर के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर किया था, जब वह अहमदाबाद स्थित एक गैर-सरकारी संगठन, नेशनल काउंसिल फॉर सिविल लिबर्टीज (एनसीसीएल) के पूर्व अध्यक्ष थे.
सक्सेना ने 2000 में पाटकर के एनबीए, जो नर्मदा नदी पर बांधों के निर्माण का विरोध करने वाला आंदोलन था, उसके खिलाफ एक विज्ञापन प्रकाशित किया था. विज्ञापन का प्रकाशन देखने के बाद, पाटकर ने सक्सेना के खिलाफ कथित रूप से प्रेस नोट जारी किया था. इस प्रेस नोट में मेधा पाटकर ने बयान दिया था कि सक्सेना एक कायर हैं, देशभक्त नहीं. पाटकर पर आरोप था कि उन्होंने 24 नवंबर, 2000 को एक संवाददाता दिलीप गोहिल को कथित तौर पर एक प्रेस नोट ईमेल किया था. दिलीप गोहिल ने गुजराती में एक लेख प्रकाशित किया था, इसी प्रेस नोट को लेकर सक्सेना ने मानहानि का मामला दायर किया था.