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    Home » ‘45 साल काम लेने के बाद पेंशन की फूटी कौड़ी दिए बिना गुडबाय नहीं किया जा सकता’ – मध्य प्रदेश हाई कोर्ट

    ‘45 साल काम लेने के बाद पेंशन की फूटी कौड़ी दिए बिना गुडबाय नहीं किया जा सकता’ – मध्य प्रदेश हाई कोर्ट

    March 18, 2025 मध्य प्रदेश 3 Mins Read
    after working 45 years goodbye cannot be done
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    जबलपुर : हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक जैन की एकलपीठ ने अपने एक आदेश में तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि 45 वर्ष सेवा देने के बाद सेवानिवृत्त हुए सफाई कर्मी को पेंशन की फूटी (after working 45 years goodbye cannot be done) कौड़ी दिए बिना गुडबाय नहीं किया जा सकता।

    कोर्ट ने नगर पालिका दमोह की ‘योगदान नहीं, तो पेंशन नहीं’ की रवायत पर करारी फटकार लगाते हुए दिवंगत सफाई कर्मी की विधवा के हक में एक माह के भीतर छह प्रतिशत ब्याज सहित पेंशन जारी किए जाने का राहतकारी आदेश पारित कर दिया। यही नहीं 12 प्रतिशत ब्याज सहित ग्रेच्युटी राशि भी दिए जाने का आदेश सुनाया गया।

    after working 45 years goodbye cannot be done – याचिकाकर्ता दिवंगत सफाई कर्मी पुरुषोत्तम मेहता की दमोह निवासी विधवा सोमवती बाई वाल्मीकि की ओर से अधिवक्ता संजय कुमार शर्मा, असीम त्रिवेदी और रोहिणी प्रसाद शर्मा ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि इस मामले में नगर पालिका, दमोह के सभी तर्क दरकिनार किए जाने योग्य हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सब मनमानी को इंगित करते हैं।

    एक परिवार को भुखमरी की कगार पर लाकर खड़ा कर दिया
    • हाई कोर्ट को अवगत कराया गया कि पुरुषोत्तम मेहता ने 1964 से 2009 तक नगर पालिका, दमोह में सफाई कर्मचारी के रूप में सेवा दी। सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन या ग्रेज्युटी नहीं मिली, जिससे परिवार भुखमरी के कगार पर पहुंच गया।
    • मामला हाई कोर्ट पहुंचा, जहां याचिकाकर्ता की मृत्यु के बाद उनकी विधवा सोमवती बाई वाल्मीकि ने न्याय की लड़ाई को गति दी। नगर पालिका का विवादास्पद तर्क है कि कर्मचारी ने पेंशन फंड में योगदान नहीं दिया।
    • नगर पालिका ने दावा किया कि मध्य प्रदेश नगर पालिका पेंशन नियम, 1980 के तहत पेंशन के लिए कर्मचारी का पेंशन निधि में योगदान जरूरी है, जो मेहता ने नहीं दिया। पेंशन निधि में कर्मचारी का योगदान नहीं होने से वह पेंशन का पात्र नहीं है।
      हाई कोर्ट ने सख्ती प्रतिक्रिया देते हुए राहत दी

      हाई कोर्ट ने नगर पालिका, दमोह के रुख को अनुचित करार दिया। अपनी सख्त प्रतिक्रिया में साफ किया कि नियमों में कहीं भी कर्मचारी के योगदान का प्रावधान नहीं है। यदि योगदान आवश्यक था तो नगर पालिका को वेतन से कटौती करना चाहिए था।

      सेवानिवृत्ति के समय यह कहना कि ‘कर्मचारी ने योगदान नहीं दिया’ उसके अधिकारों का हनन है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में जहां एक ओर कानूनी बारीकियों को रेखांकित किया, वहीं नगरपालिकाओं की संवेदनहीनता पर चिंता भी जताई।

      पेंशन निधि में ‘डीम्ड’ सम्मिलन का अर्थ है कि कर्मचारी स्वतः पात्र है। हाई कोर्ट ने नगर पालिका के तर्कों को सेवा कानूनों के विपरीत बताया और स्पष्ट किया कि 1980 के नियमों में पेंशन निधि में कर्मचारी के योगदान का कोई प्रविधान नहीं है। यदि योगदान जरूरी था, तो नियोक्ता का कर्तव्य था कि वह वेतन से कटौती करते।

      हाई कोर्ट ने नगर पालिका द्वारा “भुगतान की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है” के तर्क को निरस्त करते हुए कहा कि जब नगर पालिका ने पेंशन स्वीकृत ही नहीं की, तो राज्य पर दोष मढ़ना विधि विरुद्ध है। नगर पालिका यह तर्क तभी दे सकती थी जब वह पेंशन स्वीकृत कर चुकी होती।

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