
लघु सचिवालय के बाहर कमेटी के सदस्यों से बातचीत करते प्रशासनिक अधिकारी।
– फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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हरियाणा के भिवानी के गांव रोहनात निवासी वेद सिंह के शव का अंतिम संस्कार बुधवार दोपहर 12 बजे करीब 200 घंटों के बाद हुआ। कमेटी व प्रशासनिक अधिकारियों के साथ छह बैठकों के साथ सहमति बनी। मंगलवार रात लघु सचिवालय में करीब डेढ़ बजे हुई बैठक में वेद सिंह के दो परिजनों व संतलाल के परिजनों को कौशल राेजगार के तहत नौकरी व आर्थिक सहायता देने पर सहमति बनी।
वेद सिंह व अन्य ग्रामीण अपने गांव को शहीद का दर्जा देने, नीलाम की गई भूमि को वापस लेने और संतलाल के परिजनों को किए गए वादे को पूरा करने की मांग को लेकर धरने पर बैठे थे। 12 सितंबर की सुबह धरना स्थल पर रोहनात निवासी भूप सिंह ने वेद सिंह के शव को फंदा पर लटका देखा। शव को पोस्टमार्टम करवाया गया। लेकिन परिजनों व ग्रामीणों ने उनकी मांग पूरी न होने तक शव का अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया था।
वेद सिंह का कथित सुसाइड नोट मिलने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया। इसमें डीसी, डीआरओ और सदर कानूनगो पर आत्महत्या के लिए मजबूर करने के आरोप लगाए गए। इस मामले में ग्रामीण व विभिन्न जनसंगठन अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने को लेकर अड़ गए और लघु सचिवालय के बाहर आंदोलनरत हो गए।
मामले को सुलझाने को लेकर प्रशासनिक अधिकारी व रोहनात के ग्रामीणों की कई बैठकें भी हुईं, जो बेनतीजा रहीं। कमेटी सदस्य ओमप्रकाश ने बताया कि बैठक में अधिकारियाें के खिलाफ एफआईआर को छोड़कर अन्य मांगों पर दोनों पक्षों में सहमति बनी। जबकि एफआईआर दर्ज करने की बात पुलिस प्रशासन की कार्रवाई पर छोड़ दिया।
वेद सिंह की इच्छा के अनुसार दिया अर्थी को कंधा
वेद सिंह के कथित सुसाइड नोट के अनुसार उनके पार्थिव शरीर को किसान सभा से मास्टर शेरसिंह, सीटू संगठन से सुखदेव पालवास, सर्व कर्मचारी संघ से सुंदर सिंह कोच व लाडवा गांव के पूनिया खाप के प्रधान शमशेर नंबरदार ने कंधा दिया।
मांगें जल्द पूरी न होने पर फिर देंगे धरना
बैठक में कमेटी के कुछ सदस्य एफआईआर दर्ज करने की बात पर अड़े रहे। लेकिन कमेटी के बहुमत फैसले ने सहमति जताई। इस मामले में विभिन्न जनसंगठनों ने जल्द मांग पूरी न होने पर दोबारा से धरना देने की बात कही। धरने का समर्थन कर रही एडवोकेट सुनीता गोलपुरिया ने कहा कि वह प्रशासन व कमेटी के सदस्यों के फैसले का सम्मान करते हैं। इस मामले में सिद्ध हुआ कि गरीब आदमी विशेषकर अनुसूचित जाति के लोगों के लिए न्याय अभी कोसों दूर है।
अंतिम संस्कार में ये लोग रहे मौजूद
विनोद शर्मा, धर्मवीर सिंह, हंसराज सरपंच, विकास शर्मा, कामरेड ओमप्रकाश, एडवोकेट रघुवीर सिंह रंगा, एडवोकेट परमहंस चाेपड़ा, रोहताश भुक्कल, राजू मेहरा जत्ताई, मास्टर शेर सिंह, सुखदेव पालवास, एडवोकेट दीपेश सारसर, मास्टर सतबीर रतेरा, कमल प्रधान, विकास सिसर, रवि आजाद, विजय दहिया, राजेश सिंधु, रामावतार बापोड़ा, गजे सिंह खरक, मनीराम रंगा, अभेराम आहल्यान, पवन दनवाल, मिनी भारतीय, चंद्रप्रकाश कटारिया, राजेश प्रेम नगर, भूप सिंह प्रधान, सूबेदार धर्मवीर, सुल्तान सिंह, नवीन खरक, महाबीर बराड़, ओमप्रकाश रत्न, अशोक कटारिया, सुरेंद्र घुसकानी, फूल सिंह, श्रीभगवान काजल व अन्य ग्रामीण।
आखिर क्यों बनी मांगों पर सहमति
कामरेड ओमप्रकाश ने बताया कि कुछ लोग प्रशासनिक अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज कराने की बात पर अड़े रहे, जिसकी वजह से मामला सिरे नहीं चढ़ा था। अगर प्रशासनिक अधिकारियों पर एफआईआर की बात मानी जाती है तो फिर मृतक के परिजनों को आर्थिक सहायता और नौकरी की मांग पूरी होना संभव नहीं दिखाई दे रही थी। यह बात बाद में उन लोगों को भी समझ आई जो पीड़ित को न्याय दिलाने के साथ-साथ एफआईआर की मांग पर अड़े थे। प्रशासनिक अधिकारियों पर एफआईआर का मसला पुलिस की कानूनी जांच का हिस्सा है जो अभी जारी है।