किसी भी चुनाव में वोटर ही सर्वेसर्वा होता है और वही अंतिम निर्णायक भी होता है। इसी वजह से चुनाव से पहले सभी पार्टियां अपना घोषणा पत्र लेकर आती हैं, जिसमें यह बताया जाता है कि उनका एजेंडा क्या है। ये पार्टियां अपने घोषणापत्र में यह बताती हैं कि चुनकर आने पर वे जनता के हित में क्या-क्या काम करेंगी, कैसे सरकार चलाएंगी और जनता को क्या फायदा होगा।

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घोषणा पत्र पर निर्भर करता है बहुत कुछ 

आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर भी जहां कांग्रेस ने अपना घोषणापत्र जारी कर दिया है। वहीं भाजपा भी अगले कुछ दिनों में घोषणा पत्र जनता के सामने रखेगी। इसके अलावा अन्य दल भी अपनी घोषणाओं के साथ जनता के सामने जाएंगे। बता दें कि चुनावी घोषणा पत्र तैयार करने के लिए राजनीतिक दल कठिन मेहनत करते हैं, क्योंकि इसी घोषणापत्र को उन्हें जनता के सामने प्रस्तुत करना होता है।

घोषणा पत्र के लिए सभी दल एक विशेष टीम का गठन करते हैं, जो पार्टियों की नीति और जनता की मांग के अनुरूप मुद्दों का चयन करती है। फिर पार्टी के पदाधिकारियों और अन्य हितधारकों के साथ इस पर चर्चा की जाती है। इसके बाद आर्थिक, सामाजिक एवं अन्य मुद्दों को लेकर नीतियां तैयार की जाती हैं और इसे घोषणा पत्र के रूप में पेश किया जाता है। लेकिन केवल लोगों को लुभाने के उद्देश्य से पार्टियां घोषणा पत्र में कोई भी गलत या भ्रामक वादा नहीं कर सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट भी दे चुका है निर्देश

इसे लेकर चुनाव आयोग की कुछ गाइडलाइन हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य होता है। सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court ) भी इसे लेकर निर्देश दे चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने 5 जुलाई 2013 को एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु सरकार और अन्य के मामले में फैसला सुनाते हुए चुनाव आयोग को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के परामर्श से चुनावी घोषणापत्र के संबंध में दिशा-निर्देश तैयार करने का निर्देश दिया था।

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Supreme Court ने अपने फैसले में कई बातें कही थीं, जिनमें से कुछ ये हैं। पहला, चुनाव आयोग, चुनाव में लड़ने वाले दलों और उम्मीदवारों के बीच समान अवसर सुनिश्चित करने के लिए और यह देखने के लिए कि चुनाव प्रक्रिया की शुचिता खराब न हो, घोषणापत्र को लेकर निर्देश जारी करे, जैसा कि आयोग अतीत में आदर्श आचार संहिता के तहत करता आया है।

आयोग के पास संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत यह शक्तियां हैं कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए ऐसे आदेश दे सकता है। दूसरा, हम इस तथ्य से अवगत हैं कि आम तौर पर राजनीतिक दल चुनाव की तारीख के एलान से पहले अपना चुनाव घोषणा पत्र जारी करते हैं, ऐसी परिस्थिति में चुनाव आयोग के पास किसी भी कार्य को रेगुलेट करने का अधिकार नहीं होता है। फिर भी, इस संबंध में एक अपवाद बनाया जा सकता है, क्योंकि चुनावी घोषणापत्र का उद्देश्य सीधे चुनाव प्रक्रिया से जुड़ा होता है।

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