Single Use Plastic और पर्यावरण

दशकों पहले लोगों की सुविधा के लिये प्लास्टिक का आविष्कार किया गया था लेकिन धीरे-धीरे यह अब पर्यावरण के लिये ही नासूर बन गया है। Single Use Plastic और पॉलीथीन के कारण पृथ्वी और जल के साथ-साथ वायु भी प्रदूषित होती जा रही है। हाल के दिनों में मीठे और खारे दोनों प्रकार के पानी में मौजूद जलीय जीवों में प्लास्टिक के केमिकल से होने वाले दुष्प्रभाव नजर आने लगे हैं। इसके बावजूद प्लास्टिक और पॉलीथीन की बिक्री में कोई कमी नहीं आई है।

पिछले 50 वर्ष में हमने अगर किसी चीज का सबसे ज्यादा उपयोग किया है तो वो है प्लास्टिक। इतना ज्यादा उपयोग किसी भी अन्य वस्तु का नहीं किया गया है। 1960 में दुनिया में 50 लाख टन प्लास्टिक बनाया जा रहा था। आज यह मात्रा बढ़कर 300 करोड़ टन के पार हो चुकी है। यानी लगभग हर व्यक्ति के लिए करीब आधा किलो प्लास्टिक हर वर्ष बन रहा है।

 

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में सालाना 56 लाख टन प्लास्टिक का कूड़ा बनता है। दुनियाभर में जितना कूड़ा हर साल समुद्र में बहा दिया जाता है उसका 60 प्रतिशत हिस्सा भारत डालता है।

प्रत्येक भारतीय रोजाना 15000 टन प्लास्टिक को कचरे के रूप में फेंक देते हैं। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण पानी में रहने वाले करोड़ों जीव-जंतुओं की मौत हो जाती है।

यह धरती के लिए काफी हानिकारक है। दुनियाभर के विशेषज्ञ कहते हैं कि जिस रफ्तार से हम प्लास्टिक इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे वर्ष 2020 तक दुनियाभर में 12 अरब टन प्लास्टिक कचरा जमा हो चुका होगा। इसे साफ करने में सैकड़ों साल लग जाएंगे।

विदेश से भी आता है Single Use Plastic का कचरा

दुनिया के 25 से ज्यादा देश अपना 1,21,000 मीट्रिक टन कचरा किसी न किसी रूप में भारत भेज देते हैं। इस प्लास्टिक को रीसाइकिल करने के बाद भारत भेजा जाता है। पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों का कहना है कि अब समय आ गया है कि सरकार को प्लास्टिक प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाना चाहिए।

हमारे देश में 55,000 मीट्रिक टन प्लास्टिक का कचरा पाकिस्तान और बांग्लादेश से आयात किया जाता है। इसे आयात करने का मकसद रीसाइक्लिंग करना है। इन दोनों देशों के अलावा मिडिल ईस्ट, यूरोप और अमेरिका से भी इस प्रकार का कचरा आता है।

आपको बताते है कैसे हुई Single Use Plastic की शुरुआत-

भारत में प्लास्टिक का प्रवेश 60 के दशक में हुआ था।आज इसको लेकर अजीब-सा विवाद बना हुआ है।यह पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है लेकिन इसके पक्षधरों का दावा है कि यह ‘इको फ्रेंडली’ यानी पारिस्थितिकी संगत है क्योंकि यह लकड़ी और कागज का उत्तम विकल्प है।

वास्तव में देखा जाए तो प्लास्टिक अपने उत्पादन से लेकर इस्तेमाल तक सभी अवस्थाओं में पर्यावरण और समूचे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है। क्योंकि इसका निर्माण पेट्रोलियम से प्राप्त रसायनों से होता है।

इसलिए पर्यावरणविदों का मानना है कि प्लास्टिक से निकली हुई जहरीली गैस स्वास्थ्य के लिए एक अन्य खतरा है। इसके उत्पादन के दौरान व्यर्थ पदार्थ निकलकर जल स्रोतों में मिलकर जल प्रदूषण का कारण बनते हैं।

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जानिए Single Use Plastic से होने वाले प्रदुषण के बारे में –

प्लास्टिक की उत्पत्ति सेलूलोज डेरिवेटिव में हुई थी। प्रथम सिंथेटिक प्लास्टिक को बेकेलाइट कहा गया और इसे जीवाश्म ईंधन से निकाला गया था।

फेंकी हुई प्लास्टिक धीरे-धीरे अपघटित होती है एवं इसके रसायन आसपास के परिवेश में घुलने लगते हैं। यह समय के साथ और छोटे-छोटे घटकों में टूटती जाती है और हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करती है।

यहां यह स्पष्ट करना बहुत आवश्यक है कि प्लास्टिक की बोतलें ही केवल समस्या नहीं हैं, बल्कि प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। ये बेहद खतरनाक तत्त्व होते हैं। इनका आकार 5 मिलीमीटर से अधिक नहीं होता है।

इनका इस्तेमाल सौंदर्य उत्पादों तथा अन्य क्षेत्रों में किया जाता है।ये खतरनाक रसायनों को अवशोषित करते हैं। जब पक्षी एवं मछलियां इनका सेवन करती हैं तो यह उनके शरीर में चले जाते हैं।

वर्तमान स्थित में प्लास्टिक का प्रयोग –

वर्तमान समय में प्रत्येक वर्ष तकरीबन 15 हजार टन प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। प्रतिवर्ष हम इतनी अधिक मात्रा में एक ऐसा पदार्थ इकठ्ठा कर रहे हैं जिसके निस्तारण का हमारे पास कोई विकल्प मौजूद नहीं है।

यही कारण है कि आज के समय में जहां देखो प्लास्टिक एवं इससे निर्मित पदार्थों का ढेर देखने को मिल जाता है।
पहले तो यह ढेर धरती तक ही सीमित था लेकिन अब यह नदियों से लेकर समुद्र तक हर जगह नजर आने लगा है।धरती पर रहने वाले जीव-जंतुओं से लेकर समुद्री जीव भी हर दिन प्लास्टिक निगलने को विवश है।

इसके कारण प्रत्येक वर्ष तकरीबन एक लाख से अधिक जलीय जीवों की मृत्यु होती है।समुद्र के प्रति मील वर्ग में लगभग 46 हजार प्लास्टिक के टुकड़े पाए जाते हैं।इतना ही नहीं हर साल प्लास्टिक बैग का निर्माण करने में लगभग 4.3 अरब गैलन कच्चे तेल का इस्तेमाल होता है।

दुनिया भर में प्लास्टिक की बोतलों और इससे निर्मित पदार्थों की खपत सबसे अधिक है। इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए इस संदर्भ में वैश्विक स्तर पर जागरुकता फैलाई जा रही है साथ ही इसके समाधान हेतु नए-नए विकल्पों की भी खोज की जा रही है।

प्लास्टिक को खत्म करने हेतु एंजाइम –

वैज्ञानिकों द्वारा एक ऐसे एंजाइम का निर्माण किया गया है जो प्लास्टिक की बोतलों को अपने आप तोड़ सकता है।

 

यह पर्यावरण प्रदूषण के क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी खोज साबित होगी। संभव है इससे प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या का समाधान करने में सहायता मिल सकती है।

2016 में जापान में बेकार पड़े कूड़े के ढेर में उत्पन्न हुए एक जीवाणु द्वारा प्लास्टिक को खाने संबंधी जानकारी मिलने के बाद वैज्ञानिकों द्वारा इस संबंध में कार्य आरंभ किया गया।

इस खोज के लाभ क्या-क्या होंगे?

मौजूदा समय में प्लास्टिक की रिसाइकिलिंग के बाद उससे चटाई और प्लास्टिक रेशों जैसी कम गुणवत्ता वाली चीजें और उत्पाद बनाए जाते हैं।इस प्रकार इस प्रक्रिया में हमें बाजार में दो प्रकार की पीईटी प्लास्टिक मिलती है- पहली है वर्जिन ग्रेड और दूसरी है आर-पीईटी यानी रिसाइकिल की गई पीईटी।

वर्जिन ग्रेड को बनाने में क्रूड ऑयल का इस्तेमाल किया जाता है। इसी प्लास्टिक से बोतलों समेत उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार किये जाते हैं,जबकि रिसाइकिल किये गए पीईटी से बढ़िया उत्पाद बनाने का अब तक कोई तरीका मौजूद नहीं हो सका है।इससे न केवल मौजूदा प्लास्टिक को पुन: इस्तेमाल में लाया जा सकता है, बल्कि नए प्लास्टिक के उत्पादन को भी नियंत्रित किया जा सकता है।

 

Single Use Plastic से जुड़े सराहनीय उपाय

दुनिया के कई हिस्सों में अनुपयोगी प्लास्टिक कचरे से सड़कें बनाई जा रही हैं। वहीं ईरान सहित कई देश प्लास्टिक को छोटे टुकड़ों में तोड़कर उन्हें कंक्रीट के रूप में पत्थरों की कमी दूर करने के लिए उपयोग कर रहे हैं। वहीं प्लास्टिक के रीसाइकल की बात की जाए तो इस समय दुनिया का एक तिहाई प्लास्टिक ही रीसाइकिल हो पा रहा है।

वैज्ञनिकों के अनुसार, प्लास्टिक को अधिक से अधिक मात्रा में रीसाइकिल करने की जरूरत है। इसी तरह मुंबई का वर्सोवा तट, लोगों द्वारा प्लास्टिक से मुक्त करने के अभियान का एक अनूठा उदाहरण बना है। ऐसे ही अभियान देश के विभिन्न हिस्सों में चलाए जा रहे है |

देश की कई बड़ी कंपनियों ने प्लास्टिक प्रदूषण में कमी लाने में मदद करने की शपथ ली है। री-यूज, री-साइकिल, रिड्यूज, इन तीन तरीकों को अपनाकर प्लास्टिक प्रदूषण में भारी कमी लाई जा सकती है। भारत सरकार ने कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में प्लास्टिक प्रदूषण रोकने के लिए प्लास्टिक केरी बैग्स पर पूरी तरह पहले से ही रोक लगा रखी है।

केरल में कई सरकारी कार्यालय के कर्मचारियों ने प्लास्टिक के बने सामान जैसे प्लास्टिक की पानी की बोतलें और चाय के डिस्पोजेबल कप का उपयोग करना छोड़ दिया है। इसकी जगह स्टील कटलरी का उपयोग करना शुरू कर दिया है।

वहीं केरल के मछुआरे महासागरों में फेंकी गई प्लास्टिक को अपने जाल की मदद से बाहर निकाल रहे हैं। उन्होंने कडलममा में समुद्र-में फेंके गए सभी प्लास्टिक के थैले, बोतलें, पुआल इत्यादि को बाहर निकालकर संशोधित करने के लिए पहली बार रीसाइक्लिंग सेंटर स्थापित किया है।Loca Video Song: यो यो हनी सिंह का नया सॉन्ग ‘लोका’ हुआ रिलीज, यूट्यूब पर ट्रेंड कर रहा है वीडियो

सिक्किम सरकार ने 2016 में दो बड़े फैसले किए। पहले फैसले में उन्होंने सरकारी कार्यालयों को परिसर में पैकिंग पेयजल के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया। दूसरा फैसला,प्लास्टिक प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव को कम करने और थर्माकॉल डिस्पोजेबल प्लेट्स और कटलरी की खपत पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

समुद्र में Single Use Plastic फैलाने वाले देश

चीन 88 लाख मीट्रिक टन
इंडोनेशिया 32 लाख मीट्रिक टन
फिलीपींस 19 लाख मीट्रिक टन
वियतनाम 18 लाख मीट्रिक टन
श्रीलंका 16 लाख मीट्रिक टन
मिश्र 10 लाख मीट्रिक टन
थाईलैंड 10 लाख मीट्रिक टन
मलेशिया 09 लाख मीट्रिक टन
नाइजीरिया 09 लाख मीट्रिक टन
बांगलादेश 08 लाख मीट्रिक टन
अमेरिका 03 लाख मीट्रिक टन

भारत में Single Use Plastic पर पाबंदी की मांग ज़ोर-शोर से उठती रही है,भारत ही क्यों, दुनिया के कई देशों में इस पर पाबंदी लगी है|

ये 14 देश हैं- एंटीगुआ एंड बारबुडा, चीन, कोलंबिया, रोमानिया, सेनेगल, रवांडा, दक्षिण कोरिया, जिमबॉब्वे, ट्यूनीशिया, समोआ, बांग्लादेश, कैमरून, अल्बानिया और जॉर्जिया हैं,जिन्होंने प्लास्टिक में पाबंदी लगाई है |

बांग्लादेश सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने वाला दुनिया का पहला देश था। उसने साल 2002 में सिंगल यूज प्लास्टिक पर बैन लगाया। दक्षिण एशिया का यह देश यदि अपने यहां प्लास्टिक पर रोक लगाने के लिए कदम उठा सकता है तो भारत सहित दक्षिण एशिया के अन्य देश भी उसका अनुसरण कर सकते है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सिंगल यूज प्लास्टिक को Good bye कहने का समय आ गया है। उन्होंने इस मुहिम को सफल बनाने में सभी नागरिकों और स्वंयसेवी संगठनों के सहयोग की मांग की है। उम्मीद है कि देश के लोग अपनी नई पीढ़ी को प्रदूषण एवं प्लास्टिक रहित वातावरण देने में पीछे नहीं हटेंगे और सिंगल यूज प्लास्टिक को हमेशा के लिए ‘ना’ कहेंगे।

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60 देशों में Single Use Plastic पर बने क़ानून

कई कंपनियां हैं, जो प्लास्टिक के कचरे का उत्पादन कम करने की कोशिश कर रही हैं, इसके लिए वो अपने मुनाफ़े से भी समझौता कर रही हैं, जैसे कि कोका-कोला कंपनी हर साल केवल ब्रिटेन में ही 38,250 टन प्लास्टिक पैकेजिंग में इस्तेमाल करती है | ब्रिटेन में कोका-कोला 110 अरब प्लास्टिक की ऐसी बोतलों में अपने उत्पाद बेचती है, जिन्हें सिर्फ़ एक बार इस्तेमाल में लाया जा सकता है |

वर्जिन ग्रेड को बनाने में क्रूड ऑयल का इस्तेमाल किया जाता है। इसी प्लास्टिक से बोतलों समेत उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार किये जाते हैं,जबकि रिसाइकिल किये गए पीईटी से बढ़िया उत्पाद बनाने का अब तक कोई तरीका मौजूद नहीं हो सका है।इससे न केवल मौजूदा प्लास्टिक को पुन: इस्तेमाल में लाया जा सकता है, बल्कि नए प्लास्टिक के उत्पादन को भी नियंत्रित किया जा सकता है।

नुकसानदायक प्लास्टिक

माइक्रो प्लास्टिक: कॉस्मेटिक में उपयोग हो रहा माइक्रो प्लास्टिक या प्लास्टिक बड्स पानी में घुलकर प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। इसकी मौजूदगी जलीय जीवों में भी मिली है। माइक्रो प्लास्टिक मछलियों के साथ-साथ भोजन-श्रृंखला के जरिए पक्षियों और कछुओं में भी मिलने की पुष्टि हुई है। यही वजह है कि भारत सहित कई देशों ने जुलाई 2017 में इस पर बैन लगाया।

समुद्र में प्लास्टिक: रीसाइक्लिंग से बचे और बेकार हो चुके प्लास्टिक का बड़ा हिस्सा हमारे समुद्रों में डंप हो रहा है।

अनुमान है कि 2016 में समुद्र में 70 खरब प्लास्टिक के टुकड़े मौजूद थे, जिसका वजन तीन लाख टन से अधिक है।

जलीय जीवों को क्षति

अब तक 250 जीवों के पेट में खाना समझकर या अनजाने में प्लास्टिक खाने की पु्ष्टि कर चुके हैं। इनमें प्लास्टिक बैग, प्लास्टिक के टुकड़े, बोतलों के ढक्कन, खिलौने, सिगरेट लाइटर तक शामिल हैं।

समुद्र में जेलीफिश समझकर प्लास्टिक बैग खाने वाले जीव हैं, तो हमारे देश में सड़कों पर आवारा छोड़ दी गई गायें इन प्लास्टिक के बैग में छोड़े गए खाद्य पदार्थों के साथ बैग भी खा जाती हैं।साथ ही 693 प्रजातियों के जलीय, पक्षी और वन्य जीव अब तक प्लास्टिक के जाल रस्सियों और अन्य वस्तुओं में उलझे मिले हैं,

 

 

जो अक्सर उनकी मौत की वजह बनते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम की रिपोर्ट के अनुसार प्लास्टिक से बचाव में हो रहा निवेश विभिन्न देशों को आर्थिक रूप से भी नुकसान पहुंचा रहा है। अमेरिका अकेले 1300 करोड़ डॉलर अपने समुद्र तटों से प्लास्टिक साफ करने में खर्च कर रहा है।

सबसे ज्यादा Single Use Plastic का आयात

प्लास्टिक आयात के मामले में पूरे देश में दिल्ली सबसे ऊपर है। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश है। इन दोनों ही राज्यों में प्लास्टिक को रीसाइकिल करने का व्यवसाय किया जाता है और इसी वजह से यहां के व्यापारी इसे आयात करते हैं।

हमे प्लास्टिक से अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने के अपने देश को प्लास्टिक मुक्त बनाना पड़ेगा जिससे हम सबका जीवन सुरक्षित रह सके और चैन की साँस ले सकें|

पर्यावरण पर कुछ पंक्तियाँ..

पर्यावरण मिटा रहे ,रेतासुर कंगाल
सिसक सिसक नदिया करे ,सबसे यही सवाल।

कूड़ा करकट फेंकते ,नदियों में सामान
फिर बांटे सब ओर हम ,पर्यावरणी ज्ञान।

पर्यावरण पर लिखना ,मुझको एक निबंध।
सांसे एक दिन बिकेंगी ,करलो सभी प्रबंध।

जल ही जीवन है सदा ,जल पर वाद विवाद।
पर्यावरण विषाक्त है ,पीढ़ी है बर्बाद।

मानव स्वार्थो से घिरा ,बेचें सारे घाट।
पर्यावरण निगल गया ,नदी ताल को पाट।

पृथ्वी माता जगत की ,हम सब हैं संतान।
पर्यावरण सवांरिये ,दे इसको सम्मान।

Image Source:-www.currentnewsdainik.com

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