दीपावली की रात जब पूरा जबलपुर शहर रोशनी में नहाया हुआ था और नर्मदा तट के गौरीघाट पर 51 हजार दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया जा रहा था, उसी वक्त जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर सिहोरा में लोग अपने खून से दीपक जला रहे थे. लक्ष्य जिला सिहोरा आंदोलन समिति के आह्वान पर सैकड़ों लोगों ने अपने शरीर से रक्त निकालकर उसे दीपक में भरकर जलाया और सरकार से सवाल किया, ‘आखिर कब बनेगा सिहोरा जिला?’
दरअसल, सिहोरा को जिला बनाने की मांग वहां के लोग कई दशकों से कर रहे हैं. आंदोलनकारियों ने कहा कि यह सिर्फ विरोध नहीं, बल्कि सिहोरा की उपेक्षा के खिलाफ पीड़ा और आत्मबलिदान का प्रतीक है. उनका कहना था कि इन दीयों में केवल तेल और बाती नहीं, बल्कि वर्षों की अनदेखी और सिहोरा की वेदना जल रही है.
तब के मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने दी थी सहमति
2002 में तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने सिहोरा को जिला बनाने के प्रस्ताव पर सहमति दी थी, लेकिन चुनावी आचार संहिता लागू होने के कारण मामला अधर में लटक गया. इसके बाद प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ और भाजपा सरकार आने के बाद यह मांग ठंडे बस्ते में चली गई.
इस अनोखे विरोध प्रदर्शन के दौरान समिति के सदस्यों ने चेतावनी दी कि अगर सरकार जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाती, तो आंदोलन और उग्र रूप लेगा. समिति के संयोजक अनिल जैन ने घोषणा की कि 26 अक्टूबर को भूमि समाधि सत्याग्रह के तहत आंदोलन का अगला चरण शुरू होगा.
2003 से कर रहे संघर्ष
उनका कहना था कि यदि इसके बाद भी सरकार ने सिहोरा जिला गठन पर कोई निर्णय नहीं लिया, तो आंदोलन को लोकतांत्रिक से अलोकतांत्रिक मार्ग अपनाने पर विवश होना पड़ेगा. प्रदर्शनकारियों ने मोहन सरकार वादा निभाओ के नारे लगाते हुए कहा कि 2003 से आज तक वे अपनी मांग के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने अपने हालिया सिहोरा दौरे में वादा किया था कि कांग्रेस की सरकार बनने पर सिहोरा को जिला घोषित किया जाएगा. वहीं, भाजपा की ओर से विधानसभा चुनाव के दौरान आईं पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी आश्वासन दिया था कि अगर सिहोरा विधानसभा सीट भाजपा के खाते में आती है, तो यह मांग जरूर पूरी की जाएगी. लेकिन दीपावली की रात जले इन खून के दीयों ने एक बार फिर सरकार से यह सवाल उठा दिया है, आखिर सिहोरा कब अपना जिला बनने का सपना साकार करेगा?