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    Home » महाराष्ट्र की चुनावी पिच पर फेल हो चुके राज ठाकरे की उद्धव-शिंदे-फडणवीस से मुलाकात क्यों बढ़ा देती है सियासी तपिश

    महाराष्ट्र की चुनावी पिच पर फेल हो चुके राज ठाकरे की उद्धव-शिंदे-फडणवीस से मुलाकात क्यों बढ़ा देती है सियासी तपिश

    April 16, 2025 महाराष्ट्र 7 Mins Read
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    शिवसेना संस्थापक बालासाहेब ठाकरे की उंगली पकड़कर राज ठाकरे राजनीति में आए थे. राज ठाकरे को एक समय बालासाहेब के सियासी वारिस के तौर पर भी देखा जा रहा था, लेकिन उद्धव ठाकरे के सक्रिय होने के बाद राज ठाकरे शिवसेना से अलग हो गए. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नाम से अपनी पार्टी बनाने के बाद राज ठाकरे को मिली सियासी सफलता पानी के बुलबुले जैसी रही. मनसे 2014 और 2019 के चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत सकी और 2024 में तो खाता भी नहीं खुल सका.

    महाराष्ट्र की सियासत में पूरी तरह से फेल हो चुके राज ठाकरे अपनी पार्टी के सियासी अस्तित्व को बचाने के लिए जूझ रहे हैं. इसके बाद भी जब-जब राज ठाकरे की मुलाकात किसी अन्य पार्टी के नेता से होती है तो महाराष्ट्र की सियासी तपिश बढ़ा देती है. सीएम देवेंद्र फडणवीस से लेकर शिवेसना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे का राज ठाकरे से मिलना हो या फिर मंगलवार को एकनाथ शिंदे से हुई मुलाकात. आखिर राज ठाकरे से होने वाली सियासी मुलाकात महाराष्ट्र की राजनीति में क्यों अहम बन जाती है?

    राज ठाकरे से मिले एकनाथ शिंदे

    डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को राज ठाकरे से दादर स्थित उनके आवास ‘शिवतीर्थ’ पर मुलाकात की. 2024 विधानसभा चुनाव के बाद शिंदे की राज ठाकरे से पहली मुलाकात थी. शिंदे ने कहा कि कि मनसे अध्यक्ष राज ठाकरे के निमंत्रण पर उनके निवास पर भोजन किया और अनौपचारिक चर्चा की. इस दौरान दोनों ही पार्टियों के नेता मौजूद रहे. राज ठाकरे से मुलाकात को शिंदे ने शिष्टाचार भेंट बताते हुए कहा कि हम दोनों बालासाहेब ठाकरे के समय से एक साथ मिलकर काम करते रहे हैं. हम कुछ वजहों से नहीं मिल सके थे. आप इसका कारण जानते हैं. मगर अब हम कभी भी मिलकर बात कर सकते हैं.

    शिंदे की राज ठाकरे से मुलाकात के मायने

    एकनाथ शिंदे भले ही राज ठाकरे से अपनी मुलाकात को औपचारिक बता रहे हैं और सियासी मायने ना निकालने की बात कर रहे हैं, लेकिन राजनीति में जब भी जो नेता मिलते हैं तो उसका सियासी मकसद होता है. राज ठाकरे और एकनाथ शिंदे की मुलाकात अहम इसीलिए भी है, क्योंकि इस साल बीएमसी चुनाव होने हैं. 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में माहिम सीट पर राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे के खिलाफ शिंदे ने अपने नेता सदा सर्वणकर को चुनाव मैदान में उतारा दिया था और उद्धव ठाकरे के प्रत्याशी महेश सांवत जीतने में कामयाब रहे और अमित ठाकरे को शिकस्त मिली.

    अमित ठाकरे की चुनाव हार ने राज ठाकरे की राजनीति के लिए बड़ा झटका दिया था. इसीलिए चुनाव नतीजों के बाद सियासी गलियारे में इस बात की चर्चा होने लगी थी कि राज ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच अनबन हो गई है. ऐसा कहा जा रहा था कि एकनाथ शिंदे की तरफ से माहिम सीट पर अपनी पार्टी का उम्मीदवार वापस नहीं लिए जाने से राज ठाकरे नाराज हैं. एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र निकाय चुनाव से पहले राज ठाकरे से मिलकर अपने सारे-गिले शिकवे को दूर करने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है. राज ठाकरे और शिंदे की मुलाकात के बाद दोनों नेताओं के बीच गठबंधन की बात भी कही जाने लगी है.

    उद्धव और फडणवीस भी राज ठाकरे से मिले थे

    महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच करीब चार बार मुलाकात हुई है. हालांकि, ये मुलाकातें परिवारिक कार्यक्रम या फिर किसी प्राइवेट माहौल में हुई है, लेकिन उसके सियासी मायने निकाले जाने लगे थे. महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से सूबे की सियासत बदल गई है. विधानसभा चुनाव के बाद से उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की सियासत पर संकट मंडराने लगा है.

    शिवसेना की असली बनाम नकली की लड़ाई को एकनाथ शिंदे जीतने में सफल रहे हैं, जिसके चलते उद्धव ठाकरे के लिए अपनी राजनीति को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. वहीं, राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे अपनी सीट नहीं बचा सके, तो मनसे अपना खाता तक नहीं खोल सकी है. इस तरह बालासाहेब ठाकरे के सियासी वारिस माने जाने वाले उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों की राजनीति पर सवाल खड़े हो रहे हैं. ऐसे में ठाकरे बंधुओं की मुलाकात को सियासी नजरिए से भी देखा गया और दोनों के साथ आने के भी कयास लगाए जाने लगी.

    वहीं, महाराष्ट्र की सत्ता की कमान संभालने के बाद से सीएम देवेंद्र फडणवीस और राज ठाकरे के बीच कई मुलाकातें हो चुकी हैं. फडणवीस ने राज ठाकरे से मुलाकात उस समय की थी, जब एकनाथ शिंदे नाराज चल रहे थे. इस दौरान दोनों नेताओं के बीच किन मुद्दों को लेकर बातचीत हुई, इसका खुलासा नहीं हुआ, लेकिन फडणवीस ने कहा था कि यह मुलाकात सिर्फ मैत्रिपूर्ण थी. राज ठाकरे करीबी दोस्त हैं, इसलिए उनके घर ब्रेकफास्ट और अच्छी बाते हुईं. इसका सियासी अर्थ ना निकाला जाए. राज ठाकरे और फडणवीस की मुलाकात को बीएमसी चुनाव में बीजेपी और मनसे के गठबंधन से जोड़कर देखा गया.

    राज ठाकरे की सियासत क्यों अहम है?

    साल 2005 में जब राज ठाकरे ने शिवसेना छोड़कर अपनी अलग पार्टी बनाई, तब से वे लगातार अपनी सियासी पहचान स्थापित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. बार-बार पार्टी की विचारधारा बदलने के बावजूद आंकड़ों ने कभी उनका साथ नहीं दिया. राज ठाकरे मराठी अस्मिता से लेकर हिंदुत्व के एजेंडे पर कदम बढ़ा चुके हैं, लेकिन सफल नहीं हो सके. राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे भले ही अपना पहला चुनाव नहीं जीत सके, लेकिन मनसे की मुंबई की सियासत में अपनी पकड़ है. मुंबई ही नहीं महाराष्ट्र के ठाणे, कल्याण-डोंबिवली, पुणे, नवी मुंबई, नासिक और छत्रपति संभाजीनगर क्षेत्रों में मनसे का महत्वपूर्ण प्रभाव है.

    राज ठाकरे अकेले चुनाव लड़कर भले ही कुछ हासिल न कर सके, लेकिन किसी दल का साथ मिलने पर बड़ा सियासी गुल खिलाने की ताकत रखते हैं. यही वजह है कि जब भी राज ठाकरे से किसी की दूसरी पार्टी के नेता की मुलाकात होती है तो उससे राजनीतिक तपिश बढ़ जाती है. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे अगर अपने सारे गिले-शिकवे भुलाकर एक होते हैं तो शिवसेना अपना पुराना मुकाम हासिल कर सकती है.

    राज ठाकरे को एक समय बालासाहेब के सियासी वारिस के तौर पर देखा जाता था. राज ठाकरे न केवल बालासाहेब की तरह दिखते थे बल्कि उनके व्यक्तित्व में बालासाहेब जैसी आक्रमकता है, भाषण देने की शैली भी बिलकुल बालासाहेब की तरह. बालासाहेब की तरह ही राज ठाकरे भी कार्टूनिष्ट थे. ठाकरे बंधु अगर एक होते हैं तो खोया हुआ ठाकरे ब्रांड फिर से वापस उनके पास आ सकता है. वहीं, राज ठाकरे अगर एकनाथ शिंदे के साथ आते हैं तो उद्धव ठाकरे की राजनीति पूरी तरह खत्म हो सकती है और बीएमसी पर उनका दबदबा कायम हो सकता है. इसी तरह बीजेपी के लिए भी राज ठाकरे काफी अहम साबित हो सकते हैं.

    असल लड़ाई बीएमसी के कब्जे की है

    राज ठाकरे के बहाने बीएमसी पर कब्जा जमाने की है. विधानसभा चुनाव के बाद अब सबकी निगाहें मुंबई के बीएमसी के चुनाव पर है.बीजेपी ने महाराष्ट्र की सत्ता अपने नाम करने के बाद अब मुंबई में अपना राजनीतिक दबदबे को बनाने की कवायद है. बीएमसी पर फिलहाल उद्धव ठाकरे की शिवसेना (यूबीटी) का प्रभाव है, जिसे सिर्फ कमजोर करने की नहीं बल्कि उसे अपने नाम करनी कवायद सीएम फडणवीस कर रहे हैं. बदले हुए सियासी समीकरण के बीच उद्धव ठाकरे के लिए अपने आखिरी किले बीएमसी को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. ऐसे में उद्धव ठाकरे की शिवसेना राज ठाकरे की मनसे के साथ हाथ मिलाकर बीएमसी पर अपने दबदबा को बनाए रखने का दांव माना जा रहा.

    वहीं, एकनाथ शिंदे की शिवसेना फिलहाल बीजेपी के नेतृत्व वाली महायुति सरकार में शामिल है. पिछली महायुति सरकार में एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री थे जबकि चुनाव बाद बनी नई सरकार में उन्हें उपमुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा है. बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस सीएम बने. ऐसे में शिंदे अपनी शिवसेना को बीएमसी की सत्ता में लाना चाहते हैं, ताकि सीएम नहीं बनाने की निराशा को कम कर सकें. ऐसे में राज ठाकरे के साथ शिंदे की मुलाकात को जोड़कर देखा जा रहा है. ऐसे में देखना है कि राज ठाकरे क्या सियासी दांव चलते हैं?

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