तीन तलाक : 12 जून, 2019 को होने वाली कैबिनेट की बैठक में केंद्र मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने तीन तलाक के मुद्दे को दोबारा उठाया| कैबिनेट ने तीन तलाक के नए बिल को क्लियर कर दिया है| कैबिनेट ने इस बिल को पुनः प्रस्तुत करने का आदेश दिया है|
तीन तलाक को तलाक-ए-बिद्दत भी कहा जाता है| यह एक इस्लामिक तलाक है, जिसमें मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को कानूनी तौर पर तलाक दे सकतें है यदि वह तीन बार तलाक शब्द कहकर, लिखकर या किसी आधुनिक माध्यम से बोल देता है|
इसे भी पढ़ें : ट्रिपल तलाक़ बिल : मुस्लिम महिलाओं के लिए एक वरदान, इससे मिलेगा सम्मान
तीन तलाक़ कई सालों से देश में है प्रचलित
यह मुद्दा कई सालों से हिंदुस्तान में चल रहा है| 22 अगस्त, 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक घोषित किया था|
सुप्रीम कोर्ट के 5 बेंचेस में से 3 ने इसे असंवैधानिक कहा परन्तु 2 ने इसे संवैधानिक बताते हुए सरकार से इस प्रथा पर रोक लगाने के लिए एक कानून बनाने का आग्रह किया|
मोदी सरकार ने मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) बिल, 2017 नामक एक बिल संसद के समक्ष प्रस्तुत किया| यह बिल 28 दिसंबर, 2017 को लोक सभा द्वारा पास कर दिया गया था किन्तु राज्य सभा ने इसे पास नहीं किया था|
तीन तलाक बिल को नहीं मिली थी राज्य सभा की मंज़ूरी
राज्य सभा द्वारा पास न होने के कारण यह बिल अटका रह गया| इस बिल के अटके रहने के बाद एक ऑर्डिनेंस पास किया गया था जिसमे यह कहा गया था कि यदि कोई पुरुष तीन तलाक का उपयोग करता है तो उसे जेल हो सकती है और यह एक गैर ज़मानती अपराध है| इस में मजिस्ट्रेट से अनुरोध करके ही ज़मानत मिल सकती है|
यह ऑर्डिनेंस 22 जनवरी, 2019 को लैप्स होने वाली थी, परन्तु मोदी जी ने इसे दोबारा कैबिनेट में रखा जिसपर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अपने हस्ताक्षर कर दिए| सेशन के दोबारा शुरू होने के बाद यदि यह ऑर्डिनेंस सेशन की शुरुवात के 45 दिनों के अंदर कानून में नहीं बदलता तो यह लैप्स हो जाता है|
सोलहवें लोक सभा सेशन में यह ऑर्डिनेंस फरवरी से मार्च में लागू हुआ था परन्तु यह कानून में नहीं बदल सका| सत्रहवें लोक सभा सेशन में मोदी सरकार ने 10 ऑर्डिनेंस को कानून में बदलने का निर्णय लिया है जिसमे से एक तीन तलाक ऑर्डिनेंस है|
केस को शायरा बानो वर्सेज भारत संघ और अन्य कहा गया था| 2017 में विवादास्पद तीन तलाक मामले की सुनवाई करने वाली बेंच बहु विश्वासी सदस्यों से बनी थी|
पांच धर्म के न्यायाधीशों ने मिलकर लिया फैसला
पांच अलग-अलग समुदायों के पांच न्यायाधीश थे| मुख्य न्यायाधीश जे एस खेहर (एक सिख), जस्टिस कुरियन जोसेफ (एक ईसाई), आर एफ नरीमन (एक पारसी), यूयू ललित (एक हिंदू) और अब्दुल नज़ीर (एक मुसलमान) था|
जावड़ेकर का कहना है कि प्रस्तुत किया गया कानून लैंगिक समानता पर आधारित है जो सरकार के “सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास” वाले नज़रिये का समर्थन करता है| उन्होंने यह भी कहा कि यह बिल राज्य सभा में इसलिए अटका हुआ है क्योंकि वहां बीजेपी की संख्या कम है|
लोक सभा में मिला समर्थन
लोक सभा में यह बिल बहुत ज़्यादा समर्थन के साथ पास किया गया है|अपोज़िशन का कहना है कि तीन तलाक के मामले की अपराधीकरण नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे न केवल मुस्लिम पुरुष डरेंगे बल्कि मुस्लिम महिलाओं के लिए भी कई कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं|
आखिर में मोदी सरकार का यह मुस्लिम औरतों के लिए एक बड़ा फैसला है जो उनके अधिकारों की रक्षा करेगा| इस फैसले से मुस्लिम औरतें भी आगे बढ़ सकतीं हैं|
Image Source : Google